डबरा : कलेक्टर के आदेशों की धज्जियां उड़ाती ग्राम पंचायत बौना, सरपंच लापता ठेकेदार संभाल रहा सारे काम

Manisha Kumari Pandey
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डबरा, अरुण रजक। कुछ सालों पहले ओटीटी पर एक बड़ी ही मशहूर वेब सीरीज आई थी जिसका नाम था पंचायत। इस वेब सीरीज में गांव और गांव की राजनीति को बड़े ही बखूबी तरीके से दर्शाया गया है। इसमें बताया गया है कि कैसे पत्नी प्रधान का चुनाव जीतकर घर में बैठकर चूल्हा चौका करती है और उसका पति गांव के प्रधान की जिम्मेदारियों का निर्वहन करता है।

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हालांकि यह कोई काल्पनिक बातें नहीं है यह सच्चाई है गांव और छोटे शहरों–कस्बों की, जहां महिला सीट होने के चलते चुनाव तो महिला ही लड़ती है और जीती भी महिला ही है लेकिन जीतने के बाद जिम्मेदारियों का निर्वहन महिला की जगह उसका पति करता है। अगर उसे नाम मात्र की जनप्रतिनिधि कहा जाए तो निश्चित ही यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। जीतने के बाद जनसुनवाई भी पति करेगा, काम भी पति देखेगा, समस्याओं का निराकरण भी पति करेगा और पत्नी केवल हस्ताक्षर करेगी। इंतहा तब हो जाती है जब सरकारी मीटिंग और सरकारी दफ्तरों में पति आवागमन करना शुरू कर देते हैं और जनप्रतिनिधि पत्नी घर में चूल्हा चौका और गृहस्थी संभालती है।

ऐसा ही एक मामला सामने आया है डबरा ब्लॉक के अंतर्गत बौना पंचायत का जहां निर्वाचित होने के बाद आदिवासी महिला सरपंच अनुरागिनी तिर्की अब तक जनता के बीच में नहीं पहुंची है। लोगों का कहना है कि इन सभी प्रशासनिक विकृतियों के चलते उन्हें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं इसकी शिकायत उन्होंने कई बार वरिष्ठ अधिकारियों से भी की है पर अब तक सुनवाई नहीं हुई।

गांव के उप सरपंच बबलू सिंह ने बातचीत के दौरान कई चौंकाने वाले खुलासे किए। उप सरपंच ने सरपंच पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि “चुने जाने के बाद से ही सरपंच गांव में नहीं रहती हैं”। अभी तक केवल 15 अगस्त के दिन उन्हें गांव में देखा गया है, बाकी उनका काम दलाल रवि सिंह गुर्जर संभालता है। लोग परेशान हो रहे हैं, सरकारी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर और सील ना होने के कारण उनके काम रुके हुए हैं। सरपंच को फोन नहीं कर सकते क्यूंकि किसी के पास उसका नंबर ही नहीं है। बबलू सिंह का कहना है कि सरपंच के पंचायत में ना होने की खबर सभी वरिष्ठ अधिकारियों को है पर कोई कुछ नहीं करता है।

बौना निवासी भरत ने तो सरपंच पर आरोपों का अंबार लगा डाला। उसने कहा कि सरपंच अपना पद पांच लाख रूपये महीने के ठेके पर रवि गुर्जर को देकर चली गई है। गांव में जो भी काम चल रहे हैं वह सभी फर्जी रूप से चल रहे हैं। बाकी जो कामों का परसेंटेज होता है वह सरपंच और रवि गुर्जर के बीच में तय है। युवक ने बताया कि हमारे गांव से लगे सीमा सुरक्षा बल के परिसर से निकलने के लिए एक कार्ड बनाया जाता है जिस पर सरपंच के सील और हस्ताक्षर होते हैं। पर जब भी कोई सरपंच के निवास पर जाता है तब वहां हमेशा ताले लगे हुए मिलते हैं। युवक ने बताया की चूंकि सरपंच ने ठेका रवि गुर्जर को दे रखा है इसलिए वह केवल अपने पहचान वालों को ही सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाता है। युवक ने कहा कि यदि इन सभी कामों को सही तरीके से नियमित नहीं किया गया तो हम कलेक्ट्रेट का रुख करेंगे।

पत्रकारों को देखकर वहां मौजूद एक शख्स जिन्होंने अपना नाम वकील सिंह बताया कहां कि मैं अपाहिज हूं और मैंने पेंशन योजना के लिए सभी दस्तावेज ऑफिस में जमा किए हैं लेकिन सचिव रघुवीर सिंह परिहार मुझसे पेंशन चालू करवाने के एवज में पांच हजार रुपए की मांग की है। सिंह ने बताया कि सरपंच के ना होते हुए उन्होंने इस बात की शिकायत रवि गुर्जर से की है।

जब इस मामले की पूछताछ डबरा जनपद सीओ अशोक शर्मा से की गई तब उनका कहना था कि इस सरपंच की शिकायत पहले भी उनके पास आ चुकी है और कलेक्टर के आदेश के बाद जांच कराने पर वह ग्राम पंचायत में ही पाई गई थी। क्यूंकि यह मामला दोबारा आया है तो हम इसकी जांच फिर से कराएंगे। जब सीओ से सेक्रेटरी द्वारा रिश्वत की मांग के बारे में सवाल किया गया तो उनका कहना था कि ऐसा कोई मामला अब तक मेरे कार्यालय में नहीं आया है।

इसके बाद एमपी ब्रेकिंग न्यूज़ ने बोना ग्राम पंचायत सेक्रेटरी रघुवीर सिंह परिहार से फोन पर बात की तब उन्होंने बताया कि उन पर लगाए गए सभी आरोप झूठे हैं। उन्होंने कहा कि अभी तक उन्होंने किसी से एक रुपए की भी रिश्वत का नहीं ली है और ना ही कोई ऐसी मांग की है। महिला सरपंच अनुरागिनी तिर्की के बारे में जानकारी देते हुए परिहार ने कहा कि महिला सरपंच गांव में ही रहती है और कुछ विरोधी लोगों द्वारा उनका विरोध करते हुए उन पर आरोप लगाए जा रहे हैं।

आपको बता दें इस समय चाहे नगर परिषद हो या नगर पालिका या नगर निगम, शिवराज सरकार द्वारा लगभग 50% पद महिलाओं के लिए सुरक्षित किए गए हैं। इसके पीछे की वजह है महिलाओं का सशक्तिकरण। लेकिन पति या बेटे या रिश्तेदारों या ठेकेदारों का सरकारी मीटिंग का हिस्सा बनना और जनप्रतिनिधि का घर बैठकर गृहस्थी संभालना निश्चित तौर पर सशक्तिकरण के इस सपने को धूमिल करता है।


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