Gwalior News : ग्वालियर चंबल में मौसम के तेवर तीखे हो चुके हैं, तापमापी में पारा 40 डिग्री सेल्सियस के पार जा चुका है, नहरों में सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं पहुंच पा रहा क्योंकि कई जगह बांधों का जल स्तर बहुत नीचे पहुंच गया है, किसानों के धान की खेती को लेकर चिंता सताने लगी है इसी बीच कृषि विभाग ने किसानों को दलहनी फसलें उगाने की अपील की है।
हरसी बांध का जलस्तर बहुत नीचे पहुंचा
मौजूदा साल में जिले में पानी की कमी है और हरसी बांध का जल स्तर भी काफी नीचे पहुंच गया है। इस बात को ध्यान में रखकर कृषि विभाग ने किसानों से ग्रीष्मकालीन धान के स्थान पर कम पानी में अधिक पैदावार देने वाली गर्मी की दलहनी फसलें जैसे मूँग, तिल व सन ढेंचा उगाने की अपील की है। ये दलहनी फसलें किसानों के लिए फायदेमंद रहेंगी। साथ ही ग्रीष्मकालीन धान से होने वाले पर्यावरणीय प्रदूषण से भी बचा जा सकेगा।
उप संचालक कृषि विभाग ने किसानों को दी ये सलाह
उप संचालक किसान कल्याण तथा कृषि विकास आर एस शाक्यवार ने बताया कि ग्रीष्मकालीन धान में पेस्टीसाइड एवं दवाओं का अधिक प्रयोग होने से पर्यावरण को काफी नुकसान होता है। साथ ही धान की लगातार दो फसलें लेने से एक ही प्रकार के पोषक तत्वों का भूमि से दोहन होता है, जिससे खेत की उर्वरता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। ग्रीष्मकालीन धान के स्थान पर गर्मी में अच्छी पैदावार देने वाली दलहनी फसलें लेने से मृदा का उर्वरा संतुलन बना रहता है। साथ ही कम पानी, कम समय एवं कम लागत में किसानों को अच्छा फायदा होता है।
फसल चक्र के सिद्धांत का पालन जरूरी
कृषि विभाग ने कहा कि गर्मी की दलहनी फसलें लेने के बाद किसान भाई खरीफ में समय पर धान रोपण कर सकते हैं। खरीफ की कटाई होने के बाद वे धान के खेतों में गेहूँ की फसल बो कर अच्छा लाभ कमा सकते हैं। ऐसा करने से फसल चक्र के सिद्धांत का पालन होता है और खेत का उपजाऊपन ऊँचा बना रहता है। किसान भाईयों से यह भी अपील की गई है कि वे ग्रीष्मकाल में तिल की फसल लगाकर अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा सन या ढेंचा उगाकर हरी खाद के रूप में खेतों में पलटने से मृदा उर्वरता उच्च स्तर पर पहुँच जाती है।