ग्वालियर। पशुओं में होने वाली माता महामारी बीमारी को सरकार 25 साल पहले शून्य घोषित कर चुकी है लेकिन अभी भी इसके लिए तैनात किया गया अमला काम है और सरकारी सुविधाओं का लाभ उठा रहा है। हर साल इस महामारी की तलाश में अमले पर ढाई करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं। यह स्थिति सिर्फ ग्वालियर की ही नहीं पूरे प्रदेश की है। जहां माता महामारी तो नहीं रही, लेकिन अमला आज भी ईकाई में रहकर बिना काम के बैठे हुए हैं।
1972 में माता महामारी विभाग बना, 1994 में बीमारी खत्म हो गई-
इस बीमारी के प्रकोप से विश्वभर में पशुओं की मौत होने लगी थीं। तब विश्व स्तर पर इस बीमारी से निपटने की योजना तैयार हुई। भारत सरकार ने इससे निपटने के लिए गंभीरता दिखाते हुए 1972 में माता महामारी विभाग के नाम से एक अलग विभाग की स्थापना की। भारत में रेंडरपेस्ट इरेडीकेशन के तहत पशुओं में रोग निरोधक टीके लगाए गए। जिससे बीमारी समाप्त हो गई और फिर 1994 में पूरे भारत से बीमारी शून्य घोषित कर दी गई।
क्या थी माता महामारी
माता महामारी पशुओं में होने वाली एक खतरनाक बीमारी थी। जो जुगाली करने वाले पशुओं में होती थी। बीमार पशु के संपर्क में आने से स्वस्थ पशु भी बीमार हो जाता था। इस बीमारी के लक्षण थे जैसे लार बहना, पतले दस्त, बुखार, होंठ, मसूड़े व जीभ के नीचे दाने होना, बाद में घाव बन जाते और पानी की कमी के चलते 3 से 9 दिन में पशु की मौत हो जाती थी। इस बीमारी से लाखों पशुओं की मौत हो चुकी थी। पशुओं पर रेंडरपेस्ट विषाणु अटैक करता था जिससे बीमारी फैलती थी।
25 साल पहले भारत ही नहीं पूरा विश्व इस महामारी को शून्य घोषित कर चुका है, लेकिन महामारी के लक्षण किसी जानवर में उत्पन्न न हो जाएं इसके लिए हर साल सर्वे का काम किया जाता है। अमले के पास अपना वेतन निकालने और कभी कभार वैक्सीनेशन या प्रशासनिक ड्यूटी के अलावा कोई काम नहीं है। जबकि पशु चिकित्सा विभाग डॉक्टर व स्टाफ की कमी से जूझ रहा है।
तब और अब काम करने वाला अमला-
प्रदेश में संभागीय स्तर पर माता महामारी से निपटने के लिए कार्यालय खोला गया। संभागीय कार्यालय में वेतन अहारण संबंधी पूरा स्टाफ रखा गया। इसके साथ ही फील्ड में काम करने के प्रत्येक इकाई पर 10 एबीएफओ, चेकपोस्ट पर 2 एबीएफओ, वाहन की तैनाती व चालक और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी रहते थे।
ग्वालियर-चंबल संभाग स्वीकृत पद मौजूदा अमला
01 सहायक संचालक 01 01
11 डॉक्टर 10 08
69 एबीएफओ 27 12
02 क्लर्क 02 01
18 भृत्य 18 11
9 वाहन चालक 01 03
अमले पर साल में 2 करोड़ 64 लाख रुपए होते हैं खर्च-
ग्वालियर-चंबल संभागीय माता महामारी कार्यालय माधव प्लाजा के पीछे स्थित है। पूरे अंचल में आज भी 34 कर्मचारी कार्यरत हैं। इन कर्मचारियों पर हर माह 22 लाख और साल में दो करोड़ 64 लाख रुपए वेतन पर खर्च किए जा रहे हैं। हालांकि अब वाहन व अन्य सुविधाएं छीन ली गई हैं। प्रदेश स्तर पर तैनात अमले का वेतन इससे कई गुना अधिक खर्च होता होता है। इस मामले में विभाग के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. जीडी गुलवासे का कहना है कि यह केन्द्र शासन द्वारा बनाई गई इकाई है, मैं क्या कर सकता हूं ? प्रदेश में 80 से 90 कर्मचारी ही काम कर रहे हैं। पूरे साल माता महामारी का ही सर्वे किया जाता है। इसके अलावा वैक्सीनेशन व अन्य कोई काम कर लेते हैं। इकाई पशुपालन विभाग के अधीन है, वह शासन से पत्र व्यवहार कर इकाई समाप्त कर अपने साथ जोड़ सकते हैं। बहरहाल एक तरफ तो सरकारें काम करने वाले कर्मचारियों को उचित मेहनताना नहीं दे रहीं उधर पिछले 25 वर्षों से माता महामारी विभाग में पदस्थ अधिकारियों और कर्मचारियों को बिना काम के करोड़ों रुपये दे रहीं हैं। जो उनकी कार्यशैली पर सवालिया निशान लगा रही है।