प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण के विरोध में एक बार फिर आंदोलन की तैयारियाँ देखने को मिल रही हैं। दरअसल मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण के बढ़ते ट्रेंड को लेकर अब डॉक्टर, नर्सिंग एसोसिएशन, टेक्नीशियन और अन्य स्वास्थकर्मियों ने एक साथ मिलकर निजीकरण के खिलाफ में सड़कों पर उतरने की तैयारी कर ली हैं। जानकारी के मुताबिक संयुक्त स्वास्थ्य संगठन का अब इस मामले को लेकर कड़ा रुख देखने को मिल रहा है।
दरअसल संयुक्त स्वास्थ्य संगठन ने अब सरकार के इस कदम को जनविरोधी बताया है। वहीं संगठन का मानना है कि अगर यह प्रक्रिया गलत साबित होती है और इससे मरीज़ों को नुकसान होता है, तो वे आंदोलन करने के लिए मजबूर होंगे।
निजीकरण या PPP मॉडल को लेकर करेंगे विरोध!
वहीं स्वास्थ्य संगठन के अध्यक्ष डॉ. राकेश मालवीय का कहना है कि “यदि स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण से मरीज़ों को नुकसान हो रहा है, तो हम सभी सड़कों पर उतरकर इसका विरोध करेंगे।” दरअसल डॉ. राकेश मालवीय का कहना है कि बोले सरकार बात करे अगर प्रक्रिया सही नहीं लगी तो हम मरीजों के हित के लिए हजारों की संख्या में सड़क पर उतरेंगे। उनका कहना है कि “अगर यह प्रक्रिया गलत है, तो हम 1000 बार भी आंदोलन करेंगे। हम पहले भी आंदोलन कर चुके हैं और अगर ज़रूरत पड़ी तो फिर से करेंगे।” दरअसल संगठन का कहना है कि सरकार को पीपीपी मॉडल और आउटसोर्सिंग जैसे निजीकरण के कदम से पीछे हट जाना चाहिए।
बड़ी संख्या में सड़कों पर उतरेंगे: अध्यक्ष डॉ. राकेश मालवीय
जानकारी के मुताबिक इस आंदोलन में डॉक्टरों के अलावा लगभग 10 से 15 हज़ार टेक्नीशियन, स्वास्थकर्मियों और अन्य पदों के कर्मचारी भी शामिल होंगे। वहीं अध्यक्ष डॉ. राकेश मालवीय के मुताबिक, संयुक्त संगठन के पास करीब 15,000 चिकित्सक हैं और बड़ी संख्या में स्वास्थ्यकर्मी हैं। उनका कहना है कि अगर सरकार ने संवाद नहीं किया, तो हम प्रदेशभर में हर जिले में सड़कों पर उतरेंगे।”
स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण का विरोध बहुत पुराना
दरअसल स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण की बात करें तो यह विरोध बहुत पुराना है। जानकारी के मुताबिक राज्य सरकार ने सन् 2015 में 27 जिलों के अस्पतालों को निजीकरण में लाने की कोशिश की थी, जिसका भी विभिन्न समूहों द्वारा कड़ा विरोध किया गया था। वहीं इसके बाद भी सरकार द्वारा वडोदरा की एक निजी संस्था के साथ अनुबंध कर लिया गया था, हालांकि इसे बाद में जबलपुर हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका के बाद रद्द करना पड़ा था।