ऑनलाइन कवि सम्मेलन, विभिन्न अंचलों से आंमत्रित कवियों ने दी प्रस्तुति

Gaurav Sharma
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होशंगाबाद, राहुल अग्रवाल। नर्मदा आव्हान सेवा समिति होशंगाबाद द्वारा ऑनलाइन कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें देश के विभिन्न अंचलों से आंमत्रित कवियों ने ओज, हास्य, व्यंग्य की कविता प्रस्तुत कर खूब वाहवाही लूटी। होशंगाबाद की रक्षा पुरोहित की सुमधुर कोकिलकंठी स्वर के साथ सरस्वती वंदना से कवि सम्मेलन शुभारंभ हुआ। सांयकाल 5 बजे से प्रारंभ होकर देर शाम तक चलता रहा।

कवि सम्मेलन मे हास्य व्यंग्य के प्रसिद्ध कवि अमित चितवन ग्वालियर ने “रहज़न हैं आप या कि हैं रहबर समझ लिया,सूरत से हमने आपकी पढ़ कर समझ लिया।नीरु श्रीवास्तव कानपुर ने कहा की “सतरंगी भारत को रंगों की फुलवारी रहने दो माली चाहे जो भी हो इसमें हरियाली रहने दो बंद करो ये दहशतगर्दी गर ये हिन्द तुम्हारा है हिन्द के हो अभिमान तो खुद को हिन्दुस्तानी रहने दो”। कवि सम्मेलन को उंचाई प्रदान करते हुए पिपरिया के युवा कवि हरीश पांडे ने “उन माता-पिता की वेदना को उजागर करता हुआ गीत प्रस्तुत किया “कितने मंदिर की चौखट पर हमने दीप जलाए थे।गुरूद्वारों में माथा टेका चादर पीर चढ़ाए थे।

उपवासों को रखकर हमने नहीं निवाला खाया था।तुम क्या जानो बच्चों तुमको किन जतनों से पाया था। यशवंत पाटीदार मंदसौर ने कहा कि “ऐ देश मेरे क्या फिकर तुझे तूने शेर के जबड़े फाडे है।मेरे देश के वो सैनिक है जो सिंहो से तेज़ दहाड़े। कविसम्मेलन का कुशल संचालन करते हुए रक्षा पुरोहित होशंगाबाद ने “इत्मीनान से कट रही थी जिंदगी मेरी ओर फिर मैने एख गीत गुनगुना दिया ओर मसला हो गया”।

प्रियंका सिंह सुल्तानपुर ने कहा की”खोलो मन का द्वार रे मितवा,सुन्दरहै संसार रे मितवा”। होशंगाबाद की अंजना चौबे ने कहा की ” “आदि ने एक से बढ़कर एक”हिन्दी क सम्मान करें हम,हमको हिन्दी प्यारी। भारत मां के माथे पर,ये तो बिन्दी न्यारी है”. प्रस्तुति देकर खूब वाहवाही लूटी‌।इस अवसर पर पटल सैकड़ों सदस्य उपस्थित रहे। अंत मे आभार प्रर्दशन समिति के प्रमुख किशोर केप्टन करैया ने किया।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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