पर्यटकों के लिए एक अक्टूबर से खुलेंगे सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के गेट

Gaurav Sharma
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होशंगाबाद/इटारसी, राहुल अग्रवाल। जिले के इटारसी के सतपुड़ा टाइगर रिजर्व (एसटीआर) में पर्यटक एक अक्टूबर से वन्यप्राणियों काे देख सकेंगे। एसटीआर के गेट एक अक्टूबर काे सुबह 6 बजे खुल जाएंगे। मढ़ई-चूरना के गेट अभी 7 माह से बंद थे। 15 फरवरी से 18 जून तक लाॅकडाउन के कारण और इसके बाद एक जुलाई से बारिश के कारण 30 सितंबर तक गेट बंद रहेंगे।

एसटीआर में वन्यप्राणियों काे देखने के लिए पर्यटक दूर-दूर से यहां आते हैं। देश-विदेश के पर्यटक 9 माह तक आते हैं। पर्यटकों को यहां बाघ, तेंदुए, हिरण, बारहसिंगा, बायसन सहित अन्य वन्यप्राणी देखने काे मिलते हैं। पहली बार ऐसा हुआ है कि इस बार 7 माह तक वो वन्यप्राणी नहीं देख पाए थे।

एसटीआर के क्षेत्र संचालक एसके सिंह ने बताया कि एक अक्टूबर से गेट खाेलने की तैयारी की जा रही है। गेट खाेलने से पहले की तैयारी चल रही है। सड़कों की मरम्मत हाेगी तथा झाड़ियाें काे साफ किया जाएगा। इस बार एसटीआर के अंदर तक तवा बांध का बैक वाटर और देनवा नदी का पानी आया था, इसलिए सफाई सभी जगह हाेगी।

बढ़ेगी सैलानियों की संख्या

मढ़ई और चूरना में वन्यप्राणियाें काे देखने के लिए हर माह 1 से 3 हजार तक पर्यटक आते हैं। पर्यटकाें की संख्या माैसम के अनुसार बढ़ेगी। ठंड में ज्यादा पर्यटक आते हैं। इस बार ज्यादा नुकसान नहीं अभी तक हुई बारिश से एसटीआर की सड़काें काे ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है। पिछले बार ताे सड़कें बह गई थी। इस बार सड़क प्रभावित हुई हैं, लेकिन ज्यादा नुकसान नहीं हुआ।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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