इंदौर, आकाश धोलपुरे। इंदौर में बुधवार रात को वहशियाना चाचा की ओछी हरकत की घटना सामने आई है। दरअसल, शहर के भंवरकुआ थाना क्षेत्र के अम्बिकापुरी क्षेत्र में रहने वाली 7 वर्षीय मासूम बच्ची को उसी का चाचा गंदी नीयत के चलते बिस्किट खिलाने के बहाने बहला फुसलाकर कर सुनसान इलाके पिपलियाराव के पुराने खंडहर में ले गया और उसके सिर पर वार कर उसे घायल कर दिया।
इधर, बच्ची के गुम होने की जानकारी के बाद हरकत में आई पुलिस ने क्षेत्र में लगे सीसीटीवी फुटेज खंगालने शुरू किए और फुटेज से साफ हुआ कि बच्ची के पिता का ममेरा भाई याने की बच्ची का चाचा उसे ले गया था। इसके बाद पुलिस ने मासूम बच्ची की खोज की तो वह खंडहर में घायल अवस्था में मिली। जिसके बाद तत्काल एसपी महेशचंद्र जैन ने मासूम को इलाज के लिए एक निजी अस्पताल में भर्ती करवाया। वही पुलिस ने रात में ही हैवानियत की हदे पार कर देने वाले चाचा को अपनी गिरफ्त में ले लिया।
इधर, देर रात मासूम की इलाज के दौरान मौत हो गई जिसके बाद से ही मासूम के परिजनों का रो रोकर बुरा हाल है। इधर, बच्ची जिस समाज की उसी समाज के संगठन ने आज सुबह बच्ची की मौत की खबर मिलने के बाद भंवरकुआं थाना पर प्रदर्शन कर हत्यारे को फांसी देने की मांग की। इस पूरे मामले में शुरुआत से ही दुष्कर्म जैसी वारदात से भी इंकार नही किया है। वही मासूम के शव के पोस्टमार्टम के बाद और भी खुलासे होने की संभावना है। पुलिस ने पकड़े गए आरोपी चाचा को गिरफ्तार कर उस अलग अलग धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज जांच शुरू कर दी है।
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Gaurav Sharma
पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।
इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।