जबलपुर, संदीप कुमार। प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट में संशोधन को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम-1998 में किए गए ताजा संशोधन को चुनौती के मामले में हाईकोर्ट द्वारा केंद्र व राज्य शासन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया है। इसके लिए 23 फरवरी तक का समय दिया गया है।
याचिका में सरकारी अधिकारियों से पूछताछ से पहले सरकार से अनुमति लेने के प्रावधान को चुनौती दी गई है। गौरतलब है कि प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट में एक नई धारा 17 (1) जोड़ी गई है जिसके तहत विशेष स्थापना पुलिस, लोकायुक्त संगठन हो या फिर आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) किसी भी लोक सेवक ,अधिकारी-कर्मचारी के खिलाफ सीधे प्रकरण दर्ज नहीं कर सकेंगे। पूछताछ भी अनुमति मिलने के बाद ही होगी।
कानून में संशोधन के बाद अब अधिकारियों और कर्मचारियों की शिकायत को जांच एजेंसियां सबंधित विभाग को भेजेंगी जिसके बाद विभाग शिकायत की समीक्षा कर अपनी अनुशंसा समन्वय समिति को भेजेगा। समन्वय समिति तय करेगी कि जांच होनी चाहिए या नहीं।
अधिकारियों-कर्मचारियों से किसी मामले में पूछताछ के लिए भी जांच एजेंसियों को इसी प्रक्रिया का पालन करना होगा।
हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि सरकारी कर्मियों व लोकसेवकों का भ्रष्टाचार नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 लाया था। यह अधिनियम अपने मकसद में कुछ हद तक कामयाब भी रहा। लेकिन केंद्र सरकार ने हाल ही में इस अधिनियम में संशोधन कर इसमें नई धारा-17 (ए) जोड़ दी। इस धारा के तहत प्रावधान कर दिया गया कि लोकसेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले की शिकायत पर जांच आरम्भ करने के पूर्व सक्षम अधिकारी से अनुमति लेना आवश्यक है। कर्तव्यों में लापरवाही पर जांच एजेंसियों के प्रमुख भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 में धारा 17-ए के तहत सभी संबंधित दस्तावेज सहित प्रतिवेदन संबंधित विभाग को भेजेंगे। इसके बाद संबंधित विभाग जांच करके मामला दर्ज करने या न करने की सूचना देगा।