जबलपुर,संदीप कुमार। भारत को आजाद हुए 74 साल हो चुका हैं। भारत को अंग्रेजों से आजाद कराने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों ने बलिदान दिया था, लेकिन ऐसे बहुत से स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे हैं, जिनके नाम इतिहास की किताबों के पन्नों से गायब हो गए हैं, उन्हीं में से एक हैं राजा रघुनाथ शाह और उनके बेटे शंकर शाह। 18 सितंबर 1857 को अंग्रेजों ने दोनों को तोप के सामने बांधकर उड़ा दिया था, आज उनका बलिदान दिवस हैं।
चलाया था सामाजिक आंदोलन
1857 को जबलपुर में अंग्रेजों ने अपना बेस बनाया लिया था, लेकिन यहां पर गोंड राजाओं का एक परिवार जिसमें पिता शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह अपनी सेना के साथ अंग्रेजों का विरोध करना शुरु कर दिया। दोनों के पास इतनी सेना नहीं थी की वे अंग्रेजों से लड़ सके, इसलिए शंकर शाह और रघुनाथ शाह ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए सामाजिक आंदोलन चलाया और लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा करने के लिए मुहिम शुरू की। इस बात की भनक जब अंग्रेजों को लगी, तो अंग्रेज डर गए, उन दिनों गोंड राजाओं का साम्राज्य जबलपुर से शुरू होकर पूरे महाकौशल तक फैला था। यदि ये सभी लोग विरोध करते तो अंग्रेजों के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती थी।
पिता और पुत्र के आंदोलन से डर गए अंग्रेज
अंग्रेजों ने इनकी आवाज दबाने के लिए शंकर शाह और रघुनाथ शाह को मारने का षड्यंत्र रचा और इनके पाले हुए एक स्थानीय राजा ने अंग्रेजों को शंकर शाह और रघुनाथ शाह के बारे में जानकारी दे दी। अंग्रेजों ने चालाकी से इन गोंड राजाओं को गिरफ्तार कर लिया और भरे बाजार जबलपुर कमिश्नरी के सामने 18 सितंबर 1857 को पिता और पुत्र को तोप के आगे बांधकर उड़ा दिया। शंकर शाह और रघुनाथ शाह ने अपनी शहादत दे दी, लेकिन अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके। शंकर शाह और रघुनाथ शाह की याद में दोनों की प्रतिमा की स्थापान की गई, लेकिन इन अमर बलिदानियों को इतिहास में वो जगह नहीं मिल पाई, जो स्वतंत्रता संग्राम के दूसरे सेनानियों को मिली।