दिनदहाड़े हो रही रेत की लूट, नर्मदा किनारे खोद दिए गड्ढे, जिम्मेदार मौन

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खंडवा| सुशील विधानी| मां नर्मदा का अस्तित्व इन दिनों रेत लुटेरों के हाथ है। रोक-टोक व सख्त कारवाई के अभाव रेत लुटेरे दिनदहाड़े नर्मदा तटो पर बेखौफ होकर उत्खनन कर रहे है। जिसके चलते रेत का अवैध उत्खनन, परिवहन व विक्रय करने वाले इन लुटेरों ने नर्मदा तट की खूबसूरती को ही बिगाड़कर रख दीया है। रेत निकालने के नाम पर नर्मदा किनारे की गई अवैध खुदाई से बने बड़े-बड़े गड्ढो का नामकरण लोगों ने मौत के गड्ढे कर दिया है। इन गड्ढों में से रेत निकालने के लिए महज दो सौ रुपए के लिए मजदूरों को अपनी जान जोखिम में डालना पड़ रही है। पूर्व में इन गड्ढों व अवैध खदानों में रेत निकालने के दौरान हुई दुर्घटनाओं में मजदूरों को अपनी जान से धोना पड़ा हैं। इसके बावजूद प्रशासनिक सुस्ती जारी हैं और इस तरह की गतिविधियों को देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जैसे रेत के काले कारोबार में प्रशासन की संलिप्तता है। उल्लेखनीय है कि प्रशासन द्वारा रेत का अवैध उत्खनन पर खानापूर्ति के लिए कार्रवाई की जाती है। लेकिन बेखौफ हो रहे इस अवैध उत्खनन की जानकारी देने के बावजूद प्रशासन मुंह दर्शक बन जाता है। कुछ इसी तरह शनिवार के दिन मोरटक्का ग्राम कटार बिलोरा बुजुर्ग खेड़ी घाट ग्राम नावघाट खेड़ी स्थित नर्मदा तट पर रेत लुटेरों द्वारा बिना किसी डर के बेखौफ होकर अवैध उत्खनन और परिवहन किया जा रहा है

प्रशासन की अवैध उत्खनन के खिलाफ बड़ी ही अजब और गजब की रेत नीति बना रखी है। जिसमें कुछ रेत लुटेरों पर कर्म तो कुछ पर कहर बरसा रहे हैं।गौरतलब है कि विगत दिनों प्रशासन द्वारा अवैध खनन के खिलाफ कार्रवाई की गई थी। जिसमें रेत से भरे ट्रैक्टर ट्राली जप्त किए थे। उन ट्रैक्टर ट्रालीयो पर खनिज अधिनियम के तहत कार्रवाई की। और उस कार्रवाई को जिला कलेक्टर ऑफिस सुपुर्द कर दी। वही इस कार्रवाई से पहले भी अवैध रेत से भरे ट्रैक्टर ट्राली की धरपकड़ की लेकिन पुनः मौके स्थल से ही रवाना कर दिया गया।

नर्मदा किनारे स्थित गांवों में शासकीय व अशासकीय जमीन से रेत निकालने का गोरखधंधा लंबे समय से चल रहा है। इस संबंध में कोई शिकायत होने या समाचार प्रकाशित होने पर प्रशासन अपनी गर्दन बचाने के लिए इक्का-दुक्का वाहन पकड़कर अपनी सक्रियता दर्शाने का प्रयास करता है। इसके बावजूद नर्मदा किनारे रेत का अवैध उत्खनन दिनदहाड़े चलना, यह बताता है कि स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी भी इस अवैध धंधे को बंद कराने के नाम पर अपना आर्थिक स्वार्थ सिद्ध करने में लगे हुए हैं।


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