मुरैना, नितेंद्र शर्मा। ट्रैफिक व्यवस्था की बदहाली (Bad Traffic System) या सड़कों पर लगने वाले जाम उस शहर के सिर्फ सूरत ही ख़राब नहीं करते बल्कि ये भी बताते हैं कि उस शहर के लोगों में ट्रैफिक की कितनी समझ है। इतना ही नहीं किसी भी शहर की बदहाल ट्रैफिक व्यवस्था (Bad Traffic System) उन अधिकारियों की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े करती है जिसकी जिम्मेदारी उनके कंधों पर है। लेकिन मुरैना शहर को देखकर ऐसा लगता हैं यहाँ किसी को ट्रैफिक की परवाह नहीं है।
आज के आधुनिक युग में जैसे जैसे लोग संपन्न बनते जा रहे हैं वैसे वैसे अपनी सुविधाओं के अनुसार संसाधनों का उपयोग करना शुरू किया है। इसमें सबसे अहम जो चीज है वह है परिवहन के साधन जैसे कि मोटर साइकिल, कार इत्यादि। पहले लोगों के पास सीमित संसाधन थे तो उनका उपयोग भी कम था लेकिन दौड़ती भागती जिंदगी में संसाधनों का उपयोग काफी हद तक बढ़ गया है।
आज की स्थिति यह है आरामदायक जिंदगी में लोग अपनी जरूरत के हिसाब से इन साधनों का उपयोग कर रहे हैं, 100 मीटर दूर भी जाना हो तो दो पहिया वाहन का उपयोग किया जाता है, हर घर में जितने लोग उतने ही वाहन। लेकिन बड़ी बात ये है कि वहां खरीदने के बाद उसे सड़क पर चलाने का सलीका कोई नहीं सीखना चाहता।
कुछ इसी तरीके की स्थिति मुरैना में बनी हुई है यहां का आलम तो यह है कि व्यक्ति पूरी शिद्दत से ट्रैफिक नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए अपने दो पहिया या चार पहिया वाहन को सड़क के बीचों बीच खड़ा कर अपना काम करने के लिए चला जाता है, कान पर मोबाइल से बात करते हुए वाहन चलाना आम बात है। शहर की व्यस्ततम सड़कों पर गाड़ी स्पीड से ज्यादा दौड़ाना लोगों की आदत बन गई है। दोपहिया या चार पहिया वाहनों में ध्वनि प्रदूषण करने वाले तेज हॉर्न लगे हैं। यहाँ तक की एंबुलेंस या पुलिस सायरन लोगों के वाहनों में लगे हुए हैं इन सायरनों को बजाते हुए घूमना लोग शान समझते हैं।
मुरैना की बदहाल ट्रैफिक व्यवस्था के बारे में जब ट्रैफिक इंचार्ज एडिशनल एसपी डॉ रायसिंह नरवरिया से बात की तो बहुत सी समस्याएं गिनाने लगे, उन्होंने कहा कि शहर में पार्किंग की जगह नहीं है, लोग कहीं भी गाडी पार्क कर देते है। इसके लिए प्लानिंग की जरुरत है। उन्होंने कहा कि एक ट्रांसपोर्ट नगर होना चाहिए जिससे सड़क पर खड़े होने वाले ट्रक वहां खड़े हो, इसके लिए भी प्लान की जरुरत है। एडिशनल एसपी ने कहा कि हमने नगर निगम कमिश्नर से बात की है जल्दी ही कोई प्लान बनाएंगे।
एडिशनल एसपी ने कहा कि ये ग्रामीण क्षेत्र है यहाँ ग्रामीण क्षेत्रों से लोग मोटरसाइकिल या अपने परंपरागत वाहन ट्रैक्टर ट्रॉली से बाजार करने आते हैं और उसे खड़ा कर मार्केट या मंडी करने लगते हैं। फ़ोर्स की कमी की दुहाई देते हुए एडिशनल एसपी ने कहा कि हमारे पास जितना फ़ोर्स है उसके हिसाब से हर चौराहे पर तैनाती की जाती है।
बहरहाल ट्रैफिक समस्या पुलिस की सख्ती से ज्यादा इंसान की ट्रैफिक समझ से ज्यादा बेहतर की जा सकती है लेकिन सवाल उठता है कि बिना ट्रैफिक समझ के परिवहन विभाग ड्राइविंग लायसेंस जारी कैसे कर देता है। कैसे लर्निंग लायसेंस बनवाते समय वाहन चलाने से लोग 10 सवालों के सही जवाब दे देते हैं और जब सड़क पर वाहन चलते हैं तो उसे भूल जाते हैं। इस पर भी गौर करना जरुरी है।
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Atul Saxena
पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....
पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....