झूठा हलफनामा देने पर शहडोल कलेक्टर केदार सिंह पर हाईकोर्ट ने लगाया 2 लाख का जुर्माना, बोले वकील, रेत ठेकेदार कें दबाव में की गई थी कार्रवाई

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने शहडोल कलेक्टर डॉ. केदार सिंह पर झूठा हलफनामा देकर अदालत को गुमराह करने के मामले में 2 लाख रुपये का व्यक्तिगत जुर्माना लगाया है। राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के एक गलत मामले में कलेक्टर ने यह हलफनामा दायर किया था, जिसके बाद कोर्ट ने अवमानना नोटिस भी जारी किया।

शहडोल: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक बड़ी कार्रवाई करते हुए शहडोल के कलेक्टर डॉ. केदार सिंह पर 2 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। कोर्ट ने यह आदेश एक झूठा हलफनामा दायर कर अदालत को गुमराह करने के मामले में दिया है। इसके साथ ही कलेक्टर के खिलाफ अवमानना का नोटिस भी जारी किया गया है।

Advertisement

जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस अवनीन्द्र कुमार सिंह की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि जुर्माने की यह राशि कलेक्टर को अपने व्यक्तिगत खाते से जमा करनी होगी, न कि सरकारी खजाने से। यह पूरा मामला राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत एक युवक पर की गई गलत कार्रवाई से जुड़ा है।

क्या है पूरा मामला?

यह मामला शहडोल जिले की ब्यौहारी तहसील के ग्राम समन निवासी सुशांत बैस से जुड़ा है। सुशांत के पिता हीरामणि बैस ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर बताया था कि प्रशासन ने उनके बेटे को गलत तरीके से NSA के तहत हिरासत में ले लिया था।

याचिका के अनुसार, जिला पुलिस अधीक्षक ने नीरजकांत द्विवेदी नामक व्यक्ति पर NSA लगाने की सिफारिश की थी। लेकिन कलेक्टर डॉ. केदार सिंह ने गलती से सुशांत बैस के नाम पर आदेश जारी कर दिया, जिससे एक निर्दोष व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ।

अदालत को गुमराह करने की कोशिश

मामले की सुनवाई के दौरान कलेक्टर और एसपी कोर्ट में पेश हुए। उनकी दलीलों के बाद अदालत ने गृह विभाग के एसीएस) शुक्ला को भी शपथपत्र पेश करने का निर्देश दिया था। एसीएस ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि कलेक्टर कार्यालय के एक बाबू से टाइपिंग में गलती हो गई थी, जिसके लिए संबंधित कर्मचारी को नोटिस दिया गया है।

हालांकि, अदालत इस दलील से संतुष्ट नहीं हुई। कोर्ट ने पाया कि कलेक्टर ने अपने हलफनामे में जिस अपराध का जिक्र किया था, वह मामला पहले ही खत्म हो चुका था। इसके अलावा, जिन गवाहों के बयान प्रस्तुत किए गए थे, वे भी साल 2022 के थे और मौजूदा मामले से उनका कोई लेना-देना नहीं था।

मानवीय पक्ष भी आया सामने

याचिकाकर्ता के वकील ब्रह्मेन्द्र प्रसाद पाठक ने अदालत को बताया कि इस प्रशासनिक लापरवाही का सुशांत के परिवार पर गहरा असर पड़ा। सुशांत की शादी फरवरी में हुई थी और जब सितंबर में उस पर एनएसए लगाया गया, तब उसकी पत्नी गर्भवती थी। मार्च में उसकी बेटी का जन्म हुआ, लेकिन हिरासत में होने के कारण सुशांत अपनी नवजात बच्ची को देख तक नहीं सका।

अदालत ने इस पूरे मामले को गंभीर प्रशासनिक लापरवाही करार दिया। कोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ इस तरह का खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। झूठा हलफनामा पेश करने पर कलेक्टर केदार सिंह को अवमानना नोटिस जारी करते हुए व्यक्तिगत रूप से जुर्माना भरने का आदेश दिया गया।

वकील बोले “रेत ठेकेदार के दबाव में की कलेक्टर ने कार्रवाई”

मामले की बात करते हुए सुशांत के वकील रामेंद्र पाठक ने कहा कि कलेक्टर द्वारा यह कार्यवाही रेत ठेकेदारों के दबाव में की गई थी। जिला प्रशासन ने मनमाना व्यवहार करते हुए NSA सुशांत पर लगाया, जिसका कोई वेद आधार नहीं था। पाठक ने कहा यह आदेश नियम और कानून को दरकिनार कर जारी किया गया था जिस वजह से सुशांत को एक साल तक जेल में रहना पड़ा।

किन आधार पर होती है NSA की कार्रवाई

भारतीय व्यक्ति पर नेशनल सिक्योरिटी एक्ट लगाने के तीन मुख्य आधार हैं, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा, कानून व्यवस्था और आवश्यक सेवाओं ने बाधा उत्पन्न करना शामिल हैं। यदि सरकार को लगता है कि कोई भी व्यक्ति इन तीन बिंदुओं के अंतर्गत प्रभाव डाल सकता है तो उसे बिना किसी आप के 12 माह तक हिरासत में रखा जा सकता है। हालांकि सरकार को 5 दिन के अंदर कारण स्पष्ट करना होता है। गिरफ्तार हुए व्यक्ति को सलाहकार बोर्ड के सामने अपनी बात रख अपील करने का अधिकार दिया जाता है।


Other Latest News