Neemuch News: आजादी के दशकों बाद भी यदि किसी को गाँव निकाल दे दिया जाये, उसे गाँव से समाज से बहिस्कृत कर दिया जाये , उसका हुक्का पानी बंद कर दिया जाये क्या ऐसी कल्पना की जा सकती है? बिलकुल नहीं ..लेकिन ये सच है आज भी ऐसा हो रहा है, भारत भले ही चाँद पर पहुंच गया हो लेकिन उसके बहुत से समाजों में फैली कुरीतियाँ आज भी जिन्दा है जो लोगों के लिए प्रताड़ना का कारण बन रही है।
एक ताजा मामला नीमच जिले की ग्राम पंचायत का सिंगोली के सोडिजर गाँव का है जिसने उन सब दावों को झुठला दिया है जिनमें कहा जाता है कि समाज में जागरूकता आ गई है, गाँव का एक एक किसान खुशहाल है, सरकार की योजनायें, बदलाव के प्रयास रंग ला रहे हैं, दरअसल इससे इतर हकीकत कुछ और ही है।
समाज की पंचायत ने गाँव से कर दिया बहिष्कृत
जानकारी के मुताबिक सिंगोली तहसील के सोडिजर गांव के किसान प्रभुलाल धाकड़ को रास्ता सम्बन्धी एक विवाद के चलते उसके समाज की खाप पंचायत ने बहिष्कृत कर दिया खास बात ये है कि इस पंचायत में गाँव की सरपंच जानी बाई का पति प्रकाश धाकड़ भी मौजूद था, गौरतलब है गाँव में प्रकाश ही सरपंच करते हैं लोग उन्हें ही सरपंच साहब कहकर संबोधित करते है।
ग्रामीण का हुक्का पानी बंद, गवाहों को भी धमकी
गाँव से निकाले गए प्रभुलाल धाकड़ के मुताबिक पंचायत ने उसका हुक्का पानी बंद कर दिया, अब समाज के लोग उसके साथ उठते बैठते नहीं है , चाय तम्बाकू का आदान प्रदान नहीं होता , इतना ही नहीं पंचायत ने चेतावनी दे दी है कि यदि किसी ने प्रभुलाल के मामले में गवाही दी या उसका साथ दिया तो उसका भी हुक्का पानी बंद कर दिया जायेगा और समाज से और गाँव से बाहर कर देंगे।
सरपंच पति ने कही ये बात
जब इस मामले में सरपंच प्रकाश धाकड़ से बात की गई तो उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि इस मामले में ग्राम पंचायत का कोई दखल नहीं है ये समाज के अन्दर की बात है, एक ही समाज का होने के कारण मैं भी खाप में शामिल था लेकिन प्रभुलाल को बहिष्कृत करने का फैसला सामूहिक था, ये दो भाइयों के बीच का मामला है जिसमें प्रभुलाल के भाई ने ही समाज की पंचायत बुलाई थी।
क्या वाकई हमने तरक्की कर ली?
अब समझने वाली बात ये है कि आज प्रजातंत्र हैं, भारत दुनिया की महाशक्ति बनने की तरफ बढ़ रहा है , अधिकांश कुरीतियों को जड़ से उखाड़ फेंक दिया गया है, समाज में जागरूकता के प्रयास किये का जा रहे हैं ऐसे में इस तरह की ख़बरें सोचने पर मजबूर करती हैं, क्या वाकई हमने तरक्की कर ली? या ये वही पुराना दौर है?
समाज को जागरूक करने की सामूहिक जवाबदारी
बहरहाल, ये मामला संवेदनशील है भारत का कानून किसी को भी ऐसा देश देने की अनुमति नहीं देता, भारत के संविधान में हर नागरिक को उसका अधिकार प्राप्त है ये जिम्मेदारी उस क्षेत्र के जन प्रतिनिधियों की है प्रशासनिक अधिकारियों की है कि किसी विवाद का निपटारा किसी को गाँव से बहिष्कृत करने से नहीं होगा, ये गैर संवैधानिक है और ऐसा आदेश देने वाला भी दंड का भागीदार है, ये समझाइश उन्हें समाज के लोगों को देनी होगी और विवाद का निपटारा करना होगा ।
नीमच से कमलेश सारडा की रिपोर्ट