MP के इस गाँव मे अन्तिमयात्रा की डगर मुश्किलों भरी, कीचड़ और बहते नाले से होकर श्मशान पहुंचने को लोग मजबूर

सालों से जनप्रतिनिधि और अधिकारियों को अवगत करवाते आ रहे हैं, मगर समय के साथ अधिकारी और जनप्रतिनिधि जरूर बदल गए पर गांव और श्मशान जाने के रास्ते के हालात आज तक नहीं बदले।

Amit Sengar
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path of the last journey

MP News : देश को आजाद हुए आज 75 साल से अधिक समय बीत चुका है। वैज्ञानिकों ने चांद और मंगल पर जाने का रास्ता तो सुगम कर लिया, लेकिन देश के कुछ इलाकों में आज भी लोगों की अंतिम यात्रा का रास्ता सुगम नही हो पाया है। ग्रामीण आज भी दुर्गम रास्तों से होकर गुजरने को मजबूर है। हद तो तब हो जाती है जब मौत के बाद भी अंतिम यात्रा का रास्ता कीचड़ बहते बरसाती नालों से होकर गुजारना पड़ता है। यह स्थिति है नीमच जिले के रामपुरा तहसील के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत लसूडिया ईस्तमुरार के गांव बड़ोदिया बुजुर्ग की। जहां हालात भी इसी की बानगी पेश करते है।

क्या है पूरा मामला

बता दें कि जिले में दशकों बीत जाने पर भी ग्रामीणों को शवयात्रा कीचड़ भरे दुर्गम मार्ग से बरसाती नाले के बहते पानी से होकर निकालना पड़ रहा है। जिसमें किसी के गिरने तो किसके चोटिल होने का खतरा बना रहता है। बरसती नाले में यदि तेज बहाव है तो उसे पार करना खतरे से खाली नहीं होता। ऐसे में अंतिम संस्कार के लिए घण्टो इंतजार करना पड़ता है।

शनिवार शाम को इसी तरह का एक नजारा देखने को मिला। गांव में किशन लाल पिता नानूराम गुर्जर नामक करीब 80 वर्षीय बुजुर्ग की मौत हो गई। मौत दोपहर करीब 2 बजे के आसपास हुई थी। इसी दौरान तेज बारिश आने लगीं, जिसके चलते बुजुर्ग के अंतिम को करीब 2 से 3 घंटे तक रोकना पड़ा क्योंकि शमशान के रास्ते मे पड़ने वाले बरसाती नाले में काफी पानी बह रहा था। जब पानी उतरा तब शवयात्रा निकाली गई। उस पर भी मार्ग में कीचड़ और फिसलन के कारण शवयात्रा ले जाने में काफी परेशानी का सामना ग्रामीणों को करना पड़ा। ग्रामीणों का कहना है कि सालों से जनप्रतिनिधि और अधिकारियों को अवगत करवाते आ रहे हैं, मगर समय के साथ अधिकारी और जनप्रतिनिधि जरूर बदल गए पर गांव और श्मशान जाने के रास्ते के हालात आज तक नहीं बदले।

नीमच से कमलेश सारडा की रिपोर्ट


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मुझे अपने आप पर गर्व है कि में एक पत्रकार हूँ। क्योंकि पत्रकार होना अपने आप में कलाकार, चिंतक, लेखक या जन-हित में काम करने वाले वकील जैसा होता है। पत्रकार कोई कारोबारी, व्यापारी या राजनेता नहीं होता है वह व्यापक जनता की भलाई के सरोकारों से संचालित होता है।वहीं हेनरी ल्यूस ने कहा है कि “मैं जर्नलिस्ट बना ताकि दुनिया के दिल के अधिक करीब रहूं।”

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