देश-विदेश से पहुंचे श्रद्धालु
इस महोत्सव में धार्मिक आयोजन, प्रवचन, पूजा-अर्चना और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, जहां लोग अपने आत्मिक और धार्मिक संबंधों को मजबूत करने के लिए इस उत्सव में भाग लेते हैं। बता दें कि यह भक्तों के लिए यह बहुत ही पवित्र और आध्यात्मिक क्षण होता है। इसकी शुरूआत साल 1952 में नवंबर के आखिरी रविवार को मनाया जाता है। इस दिन सांची के बौद्ध स्तूप परिसर स्थित चैत्यगिरि विहाप मंदिर का लोकार्पण किया गया था। तभी से हर साल नवंबर के आखिरी संडे को यह महोत्सव मनाया जाता है। वहीं, इस बार श्रीलंका, थाईलैंड, जापान, वियतनाम समेत अन्य देशों से भक्तगण यहां पहुंचे हैं। दरअसल, ऐसे उत्सव पर्यटन को भी बढ़ावा देते हैं, जिससे लोग इस स्थल की सुंदरता और धार्मिक महत्ता का आनंद ले सकें।
कलाकारों द्वारा दी गई मनमोहन प्रस्तुतियां
वहीं, शोभायात्रा के दौरान यहां मनमोहन सांस्कृतिक प्रस्तुतियां भी दी गई। बता दें कि कलाकार ढोलक और बांसुरी की मधूर धुन में नृत्य करते चल रहे थे। इन प्रस्तुतियों में अर्पणा चतुर्वेदी एवं उनके साथी कलाकारों द्वारा बुद्धभाव पर नृत्य नाटिका की प्रस्तुति दी गई। साथ ही भोपाल की टीम और डॉ. हरिप्रसाद पोडिवाल द्वारा बांसुरी वादन और कालाजली ग्रुप भोपाल के प्रदीप कृष्णन के निर्देशन में भारतीय नृत्य नाटिका की प्रस्तुति दी गई।
बौद्ध धर्म के महान उत्सवों में से एक
केवल इतना ही नहीं, रविवार यानि 26 नवंबर को इंदौर की हर्षिता दाधीच द्वारा 7 सदस्यीय टीम के साथ मिलकर नृत्य नाटिका का प्रस्तुतीकरण किया जाएगा। इसके बाद, भोपाल के अभिलेख गुंदेचा और उनकी 6 सदस्यीय टीम द्वारा पखावज वादन की प्रस्तुति की जाएगी। वहीं, भोपाल के श्री सलीम अल्लाहवलो अपनी पांच सदस्य टीम के साथ सूफी गायन प्रस्तुत करेंगे। बता दें कि यह महोत्सव बौद्ध धर्म के महान उत्सवों में से एक है, जो महात्मा बुद्ध के बोधि प्राप्ति की जयंती के रुप में मनाया जाता है।