सागर, विनोद जैन। सागर निवासी जैन परिवार जिनका नाम चंद्रकुमार जैन है। इनका पैतृक घर सागर जिले के सुरखी में था जो कि सब्जी मंडी के रास्ते में पड़ता है। उनको शुरु से ही यह विश्वास था कि उनके घर पूर्वजों की संपत्ति कहीं न कहीं छुपी हुई है, इसीलिए सागर में रहते हुये भी उन्होंने सुरखी में स्थित अपना खंडहर पड़ा मकान किसी को भी किसी भी कीमत पर नहीं बेचा।
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आपको बता दें कि उनके मकान से सटकर जैन धर्मशाला भी बनी है। जहां कभी कभी जैन संत रुका करते थे। जैन समाज ने भी चंद्रकुमार जैन से अनेकों बार यह आग्रह किया कि अपना मकान जैन धर्मशाला को कीमत लेकर दे दें क्योंकि जैन धर्मशाला छोटी है और जब कभी ज्यादा की संख्या में जैन मुनियों का आगमन होता है तो जगह कम पड जाती है।
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जैन समाज के कई बार आग्रह करने पर भी उन्होंने अपना मकान जैन समाज को किसी भी कीमत पर नहीं दिया। फिर एक दिन सुरखी में आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज का आगमन हुआ और चंद्रकुमार जैन ने आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के अपने चौके में आहार करने की कामना के साथ चौका लगाया और चंद्रकुमार जैन की किस्मत के साथ बुद्धि भी खुली।
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आचार्य श्री आहार करने चंद्रकुमार जैन के यहां गये। उसके बाद चंद्रकुमार जैन ने अपना मकान जैन मंदिर को दान कर दिया। इसके बाद जैन धर्मशाला और उस पुराने मकान को तोडकर भव्य धर्मशाला के निर्माण का कार्य शुरू हो गया। जब पिलर और बीम का काम लगा तो बीम के नीचे नींव के पत्थर रखते हुये जमीन से 6 इंच नीचे ही काम कर रहे मजदूरों को सन 1909 के चांदी के सिक्के मिले।
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मजदूर सिक्के मिलते ही काम छोडकर सिक्के लेकर चले गये और उसमें से एक सिक्का उन्होंने किसी को बेचकर उसकी कीमत का आंकलन किया तो एक सिक्का किसी ने 750 रुपये में खरीद लिया इसके बाद छोटे छोटे बच्चे भी अपनी किस्मत आजमाने उसी जगह पर खुदाई करते दिखाई दे रहे हैं।