शाजापुर।
विजयादशमी पर रावण दहन की परंपरा तो पूरे देश में निभाई जाती है, लेकिन मध्य प्रदेश के शाजापुर में कंस के वध की अनूठी परंपरा बरसों से चली आ रही है. कंसदशमी के मौके पर मथुरा के बाद प्रदेश के शाजापुर में ही कंस के वध कि इस अनूठी परम्परा को मनाया जाता है. 265 साल पुरानी इस परम्परा के तहत हर साल दीपावली के 2 दिन बाद शहर के कंस चौराहे पर कंस के आदमकद पुतले को रखा जाता है और इसके ठीक आठ दिन बाद कंस दशमी के दिन पहले शहर में भगवान श्रीकृष्ण,बलराम और उनके साथी धनसुखा-मनसुखा का एक चल समारोह निकाला जाता है. चल समारोह जब शहर के आजाद चौक पंहुचता है तो यहां पर श्रीकृष्ण कि सेना और दानवों के बीच जमकर युद्ध होता है।
इस बार कृष्ण और कंस दोनों की सेनाओं बीच हुए रोचक सवांद में सर्जिकल स्ट्राईक और धारा 370 जैसे मुद्दे भी छाए रहे जिसे लोगों ने काफी पसंद किया. बारह बजे भगवान कृष्ण द्वारा कंस के वध कि परम्परा के तहत इस पुतले पर वार करके इसे नीचे गिराया जाता है. पुतले के नीचे गिरते ही नीचे खड़े ग्वाला समाज के लोग इस पीटते और घसीटते अपने साथ ले जाते हैं।
रामलीला की तरह कृष्ण की इस लीला को मंच पर पेश करने के लिए कलाकारों में काफी उत्साह रहता है. कलाकार इसके लिए पूरे साल तैयारी करते हैं. कृष्ण, बलराम, सुदामा, कंस आदि का मेकअप करने में ही कलाकारों को खासा समय लग जाता है, लेकिन कंस वध से संबंधित इस परंपरा को पूरे इलाके के लोग न केवल शिद्दत से निभाते हैं बल्कि पूरा आनंद भी उठाते हैं।