SHIVPURI NEWS : महाराज , यदि कोई बीमार हो जाता था और मजदूरी पर नहीं जा पाता था तो, मिल मालिक और उसके गुर्गे पैरों में जंजीर बांधकर ड़ाल देते थे, खाना की तो बात ही मत करो मुश्किल से एक टाइम थोड़ा बहुत चावल खाने को देते थे, हमने बहुत संकट झेले हैं … ये कहते हुये कर्नाटक से मिल मालिक के चंगुल से छूटकर आए मजदूर अपना दर्द बताकर एसपी के सामने फूट फूटकर रोने लगे। जिसने भी इनके साथ हुए कृत्य की कहानी सुनी, उसके रोंगटे खड़े हो गए।
इस तरह लौटे
दरअसल सहरिया क्रांति और पुलिस के संयुक्त प्रयास से कर्नाटक में एक मिल मालिक व उसके गुर्गों द्वारा बंधुआ मजदूरी कराने के लिए बंधक बना लिए गए मजदूर शिवपुरी वापस लौटकर आए। यहाँ पूर्व से ही इंतज़ार कर रहे उनके परिजनों को देखते ही दोनों तरफ से आंसुओं की धार बह निकली। सभी परिजन गले लगकर फूट- फूटकर रोने लगे, छोटे छोटे बच्चे सहमे हुये थे वहीं सभी मजदूरों की आँखें नम थीं। इसके बाद सभी बंधनमुक्त आदिवासी पुलिस अधीक्षक कार्यालय पहुंचे जहां पुलिस जिंदाबाद के नारों व सहरिया क्रांति जिंदाबाद के नारों से आकाश गूंज उठा।
ढ़ोल नगाड़ों पर जमकर नाचे कर्नाटक से वापस आए मज़दूर
सहरिया क्रांति कार्यालय पर कर्नाटक से आ रहे मजदूरों के आगमन से पहले ही परिजन पहुँच गए वे प्रियजनों का ढ़ोल नगाड़ों से स्वागत करने बैठे हुये थे। मजदूरों का जत्था जैसे ही संजय बेचैन के निवास पर पहुंचा सभी खुशी से झूम उठे, जमकर नगाड़ों व ढ़ोल की थाप पर नाचे।
ऐसे फंसे थे जाल में
खिरई घुटारी के ये सभी मजदूर सरकार के कागजों मे तो मजदूरी पा रहे थे मगर असल हकीकत में इनके पास खाने तक को पैसे नहीं बचे थे, परेशान मजदूरों को बाराँ गाँव जो सुभाषपुरा थाने क्षेत्र के रहने वाले अनिल जाटव ने अपने झांसे में लिया और उन्हे बाहर ले जाकर अच्छी नौकरी, रहना, खाने का लालच दिया, अनिल की बातों में सभी आदिवासी आ गए इसके साथ ही अनिल ने बैराड़ थाना के तिघरा, बालापुर, सारंगपुर, जाफ़रपुर से भी आदिवासियों को बरगला लिया, अनिल ने इन्हे इंदौर ले जाने का कहकर कर्नाटक ले जाकर पटक दिया। यहीं से आदिवासियों को यातनाएं मिलना शुरू हुआ। एक मिल मालिक जिसका नाम आदिवासी नहीं जानते उसने इन्हे जबरन मारपीट कर अपने यहाँ काम कराया।
बीमार से कराते थे काम, पैसा मांगने पर बांध देते थे बेड़ियाँ
इन आदिवासियों पर अमानवीय अत्याचार का दौर ऐसा चला की यह हताश हो गए, इन्हे लगा की अब यह कभी घर वापस नहीं लौट पायेगे, इन्हे सुबह 6 बजे उठा दिया जाता था और रात 10 बजे तक खेतों में गन्ना कटवाया जाता था, इस बीच कोई मजदूर यदि बीमार भी हो जाता तो उसे जानवरों की संकल से बांध दिया जाता था, वहीं मजदूरी के पैसे मांगने पर बेल्ट और गैस की लेजम से पीटा जाता था।
पुलिस ने फैलाया कर्नाटक में अपना नेटवर्क तब मिले मजदूर
पुलिस अधीक्षक रघुवंश सिंह भदोरिया ने जानकारी लगते ही मजदूरों की सकुशल वापसी के प्रयास शुरू कर दिये थे जहां उन्होने कर्नाटक के संबन्धित जिला के एसपी को सारा मामला समझाया वहीं पुलिस का एक दल यहाँ से रवाना किया दल के साथ सहरिया क्रांति सदस्य सीता आदिवासी भी गया। वहाँ पुलिस ने पहले सभी मजदूरों को मुक्त कराया बाद मे सभी को सकुशल कर्नाटक एक्स्प्रेस से ग्वालियर भिजवाया, जिसके बाद सभी गुरुवार को शिवपुरी पहुंचे। पुलिस 1 सप्ताह की मशक्कत के बाद मजदूरों को वापस ला सकी है।
पैर में लोहे की जंजीर बंधी थी मजदूर के
जिस समय मजदूर पुलिस अधीक्षक को अपनी आपबीती सुना रहे थे तभी एसपी की नजर एक मजदूर पर पड़ी जो कर्नाटक से आया था , उसके पैर मे लोहे की जंजीर पड़ी थी। एसपी ने पूछा ये क्या है, मजदूर मुकेश आदिवासी ने रोते हुये बताया कि विरोध कर पर इसी से बांधकर रखते थे।
ये मजदूर आए मुक्त होकर
जो मजदूर कर्नाटक से वापस आए हैं उनमे चाइना आदिवासी , कैलास , रसना आदिवासी , रामदास जातव , रूबी जातव , बसंत आदिवासी , सुहागी आदिवासी ,किरण आदिवासी, कोमल आदिवासी, क्र्श्ना आदिवासी , सीता आदिवासी ,रुकमा आदिवासी, दीपु आदिवासी , रेश्मा आदिवासी , निशा आदिवासी , गोविंद आदिवासी , विजय आदिवासी , रंडुलारी आदिवासी , काजल आदिवासी , अशोक आदिवासी , जंडेल आदिवासी , राजदीप आदिवासी, ल्ख्मा आदिवासी, बच्चिन आदिवासी , रामवीर आदिवासी , रेहाना आदिवासी, नीरज आदिवासी , सलीना आदिवासी , विक्रम आदिवासी , मुकेश आदिवासी , रेवती आदिवासी , शिशुपाल आदिवासी , भारती आदिवासी ,शिव सिंह आदिवासी , दिलीप आदिवासी , विश्राम आदिवासी , रवि पडोरा, बंटी आदिवासी ,राधा आदिवासी, रोशन आदिवासी, हसीना आदिवासी, केपी आदिवासी, सतीश आदिवासी, पापुआ आदिवासी , भूरा आदिवासी , चम्पा आदिवासी, अनिल आदिवासी, ऊधम आदिवासी, पवन आदिवासी, कमल आदिवासी आदि शामिल हैं ।