Singrauli News : चुनावी घमासान अपने पूरे चरम सीमा पर है। बस एक हफ्ते बात अगले शुक्रवार को मतदान होना है। ऐसे में सभी प्रत्याशी मतदाता को रिझाने के लिए किसी भी तरह की कोर कसर छोड़ना नहीं चाह रहे, पर मतदाता अभी भी खामोश हैं। वर्ष 2018 में जहां विधानसभा चुनाव के दौरान सिंगरौली विधानसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिला था, वही इस बार इस सीट पर चौतरफा मुकाबले देखने को मिल रहा है। इसलिए राजनीतिक पंडित भी मतदाता का रुख समझ नहीं पा रहे। असमंजस इस कदर है कि ढंग से आकलन करने वाले खुले तौर यह बता पाने की स्थिति में नहीं हैं कि ऊंट किस करवट बैठ रहा है।
लाडली के भरोसे राम बैठे
2013 के चुनाव के बाद भाजपा प्रत्याशी जहां बीते 5 वर्ष के कार्यकाल पर वोट मांगते नजर आ रहे थे, वहीं इस बार के चुनाव में वह पूरी तरह लाडली बहना योजना के भरोसे हैं। सत्ता विरोधी लहर का कारण शायद शीर्ष नेतृत्व को भी पता है, इसीलिए उन्होंने सिंगरौली जिले के तीनों जीते हुए उम्मीदवारों का टिकट काटकर नए उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। परिणाम स्वरूप टिकट कटे नेताओं समेत उनके करीबियों की नाराजगी का खामियाजा अब उम्मीदवारों को भुगतना पड़ रहा है। पार्टी में चल रहा गतिरोध और भीतर घात इन पर भारी पड़ रहा है। इधर तीन बार से विधायक रामलल्लू वैश्य ने भी चुनाव प्रचार से दूरी बना ली है। पार्टी का टिकट नहीं मिलने से विशेष जाति वर्ग के लोगों में खासी नाराजगी है और शायद इसका खामियांजा भाजपा को भुगतना पड़े।
आपके भरोसे आप
आप पार्टी किसी और पर भरोसा नहीं जाता पा रही। इसीलिए विधानसभा चुनाव हो या निगम चुनाव हर बार रानी अग्रवाल को ही उम्मीदवार बनाकर चुनावी रण में उतार दिया जाता है। इसका परिणाम यह है कि पार्टी के प्रदेश सचिव और जिला पंचायत सदस्य संदीप शाह रानी अग्रवाल पर परिवारवाद का आरोप लगाते हुए विद्रोह करते नजर आते हैं। गौरतलब है कि निगम चुनाव में दोनों ही प्रमुख पार्टियों से त्रस्त जनता ने रानी पर भरोसा जताया था परंतु चुनाव के बाद उनके द्वारा भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। फिर भी आप पार्टी जनता के भरोसे इस बार भी बैठी है। अब जनता कब तक लड्डू और झाड़ू के भरोसे बैठेगी यह कह पाना मुश्किल है। फिलहाल चुनावी रण में फसी रानी सुबह से देर शाम तक जनसभा और संपर्क करने में जुटी हैं। परंतु मतदाता की नब्ज टटोलने में वह भी असफल दिख रही।
उपेक्षा के शिकार कांग्रेस नेता भी साइलेंट मोड पर
कांग्रेस के सिपासालार लगातार पांच वर्षों तक जनहित के कार्यों में जुटे रहते हैं परंतु जब टिकट की बारी आती है तो हर बार रेनू शाह को मैदान में उतार दिया जाता है। 2018 के विधानसभा चुनाव में उनके ऊपर पैराशूट प्रत्याशी के तौर पर उतारे जाने को लेकर कांग्रेस में दरार पड़ गई थी। यही कारण था कि कांग्रेस नेता अरविंद सिंह चंदेल विरोध करते हुए चुनाव मैदान में उतर गए थे। इस बार भी राम शिरोमणि शहवाल ने विरोध जताते हुए जहां प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपनी पीड़ा जताई थी, वही कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिका अर्जुन खड़गे को सिंगरौली सीट पर पुनर्विचार के लिए पत्र भेजा था। हालांकि शीर्ष नेतृत्व द्वारा उन्हें आश्वासन देकर शांत कराया गया परंतु सूत्र बताते हैं कि राम शिरोमणि यहाँ कई कांग्रेस नेता समेत पार्टी के फैसले से नाराज हैं। इसीलिए उनके द्वारा प्रसाद प्रचार में खासी दिलचस्पी नहीं दिखाई जा रही प्रमुखता से प्रचार-प्रसार नहीं। कहीं पार्टी में गतिरोध कांग्रेस के लिए नुकसानदायक ना हो जाए।
उपेक्षित चंदे भी हाथी पर सवार
पिछली बार जहां कांग्रेस से उपेक्षित अरविंद सिंह चंदेल ने चुनाव मैदान में थे तो वहीं इस बार भाजपा से उपेक्षित चंद्र प्रताप विश्वकर्मा बीएसपी का दामन थाम चुनाव मैदान में उतरे हैं। कल तक जहां भाजपा के गुण गा रहे चंदे अब टिकट नहीं मिलने पर भाजपा का विरोध करते नजर आ रहा हैं। वहीं लोगों के बीच पहुंचकर वह वादा कर रहे हैं की अगर उन्हें जनता का आशीर्वाद मिला तो वह हर वह काम करेंगे जो जनहित में होगा। इसके अलावा कई अन्य दल के प्रत्याशी समेत निर्दलीय भी चुनाव मैदान में उतर लोगों से आशीर्वाद लेने में लगे हैं। बहरहाल साइलेंट मतदाता अपने पत्ते नहीं खोल रहे, जिस कारण प्रत्याशियों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं।
सिंगरौली से राघवेन्द्र सिंह गहरवार की रिपोर्ट