नगर पालिका बाजारों को अपने जगह पर वापस लगाने की तैयारी में, व्यापारियों ने की ये मांग

Gaurav Sharma
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सिंगरौली,राघवेन्द्र सिंह गहरवार।  जिले में बढ़ते कोरोना महामारी को देखते हुए जिला प्रशासन ने जयंत एरिया क्षेत्र में लगने वाली सभी सब्जी बाजर जैसे लक्ष्मी बाजार,इंदिरा बाजार और महुआ बाजार को महुआ बाजार के ही स्थान पर लगवाया जा रहा था, ताकि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराया जा सके। लेकिन अब नगर पालिक निगम सिंगरौली इंदिरा बाजार और लक्ष्मी बाजार को अपने पुराने स्थान पर लगाने की तैयारी में लगा हुआ है।इंदिरा बाजार और लक्ष्मी बाजार दोनों छोटा छोटा बाजार है और यहां स्थान भी काफी कम है, इन बाजारों में पूर्व की भांति अगर बाजार लगाया गया तो कहीं भी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराना नामुमकिन हो जाएगा, जिसके कारण कोरोना महामारी की चैन और भी तगड़ी होती चली जाएगी।

वहीं इस मामले को लेकर स्थानीय बुद्धिजीवी और व्यापारियों ने जिला प्रशासन से मांग की है कि जब तक कोरोनावायरस छुआछूत की बीमारी दूर ना हो जाए तब तक इस तरह छोटे स्थानों में बाजार को न लगवाया जाय। महुआ बाजार में ही सारी बाजारों को संचालित कराया जाए, जिससे कि कोरोनावायरस जैसी छुआछूत की बीमारी से जयंत वासियों को बचाया जा सके। क्योंकि जिस तरफ कोरोना का प्रकोप जिले में अपना पैर पसार रहा है अगर इसी तरफ कम जगह पर बाजार का संचालन करवाया जायेगा तो कोरोना वायरस बीमारी और तेजी से बढ़ सकता है। कोरोना वायरस को कुछ हद तक रोकने के लिए बड़े जगहों पर जैसे महुआ बाजार में ही बाजारों को लगवाया जाता है। वहां बाजार की दृष्टि से काफी स्थान होने से एक -एक मीटर की दूरी पर दुकान संचालित किया जा सकता है।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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