ग्वालियर, अतुल सक्सेना। देश और दुनिया में सुविख्यात पंजाबी सूफियाना गायकी के सरताज पद्मश्री पूरनचंद्र वडाली एवं उनके पुत्र उस्ताद लखविंदर वडाली ने अपनी जादुई आवाज़ में सूफियाना कलाम सुनाकर श्रोताओं को भक्तिरस में सराबोर कर दिया। सूफियाना पंजाबी सुरों के रसों में डूबकर रसिक श्रोता झूम उठे तो सुर सम्राट तानसेन की देहरी मीठे मीठे रूहानी संगीत से महक उठी। मौका था तानसेन समारोह की पूर्व संध्या पर शनिवार की देर शाम हजीरा चौराहे के समीप इंटक मैदान पर आयोजित हुए उप शास्त्रीय संगीत कार्यक्रम पूर्वरंग “गमक” का।
उस्ताद पूरन चंद वडाली अपने पुत्र लखविंदर वडाली के साथ जैसे ही “गमक” के मंच पर पहुंचे सारा पंडाल मानो उठ खड़ा हुआ, तालियों की गड़गड़ाहट से रसिकों ने उनका स्वागत किया। जवाब में उस्ताद पूरन चंद वडाली ने शेर पढ़ा – “जितना दिया है सरकार ने मुझको उतनी मेरी औकात नहीं, ये तो करम है उनका वरना मुझमें तो कोई बात नहीं। वे आगे बोले तानसेन कहीं गए नहीं वो तो रूहानी आत्मा है जो यहीं है ये हमारा सौभाग्य है कि आज उनके दर पर हम हाजिरी लगाने आये हैं।
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पद्मश्री पूरनचंद्र वडाली एवं लखविंदर वडाली ने “आज की बात फिर नहीं होगी, ये मुलाकात फिर नहीं होगी”.. शेर के बाद “तुझे देखा तो लगा मुझे ऐसे, जैसे मेरी ईद हो गई…” कलाम सुनाकर अपने गायन का आगाज़ किया। इस कलाम के माध्यम से उन्होंने जब बताया कि ईश्वर ,अल्लाह,मंदिर व मस्जिद में कोई भेद नहीं तो ऐसा लगा मानो सर्व धर्म सम्भाव से ओत-प्रोत गंगा-जमुनी तहजीब के झरने फूट पड़े हैं।
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सर्द मौसम में जमी महफ़िल में पद्मश्री एवं लखविंदर वडाली ने जब अमीर खुसरो रचित प्रसिद्ध कलाम “खुसरो रैन सुहाग की जो जागी पी के संग” से अपनी सूफियाना गायकी आगे बढ़ाई तो सम्पूर्ण वातावरण में गरमाहट दौड़ गई। अगली प्रस्तुतियां भी लाजवाब रहीं। ” तू माने या माने दिलदारा असां ते तैनूं रब मनया” इस कलाम को भी उन्होंने पूरी शिद्दत से पेश किया। इसके बाद ” वे माहिया तेरे बेखन नूं” और नी मैं कमली यार दी कमली” जैसे पंजाबी और सूफियाना रचनाओं को पेश कर वडाली पिता पुत्र ने रसिकों को ऐसा रसपान कराया कि रसिक मानो सुध बुध खो बैठे।