Ujjain Heera Mill: लंबे समय से उज्जैन के हीरा मिल के चाल में स्थित 35.926 हेक्टेयर भूमि जिसकी कीमत 750 करोड़ पर वाद विवाद की स्थिति बनी हुई थी। यहां पर अब तक नेशनल टैक्सटाइल कॉरपोरेशन को अपना हक जमाते हुए देखा जाता था। लेकिन अब अपर कलेक्टर मृणाल मीणा ने भू-राजस्व संहिता के तहत एनटीसी को यहां से बेदखल करने के आदेश जारी कर दिए हैं। अब ये जमीन पूरी तरह से शासन के हो चुकी है जिनका उपयोग बड़े प्रोजेक्ट और योजनाओं को मूर्त रूप देने के लिए किया जाएगा। हालांकि, इसके बीच यहां रह रहे 850 परिवारों के लिए भी अच्छी खबर सामने आई है।
Ujjain Heera Mill जमीन पर फैसला
हीरा मिल का है प्रकरण लंबे समय से चल रहा था, उसके फैसले में रवासियों के बारे में कोई भी जिक्र नहीं दिया गया है और फिलहाल इन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि ये यहां पर निवास कर सकेंगे। कलेक्टर की ओर से पट्टेदार को भूमि से बेदखल करने के आदेश पारित किए गए हैं। ये भी कहा गया है कि अब इस पर पूरी तरह से विधिवत शासन का कब्जा है।
ऐसा है हीरा मिल मामला
सन 1928 में हीरा मिल की शुरुआत की गई थी और राजा बहादुर सेठ ने सरकार से लीज पर जमीन लेकर इसका संचालन शुरू किया था। इसमें लगभग 4000 श्रमिक काम किया करते थे, जहां पर लट्ठा और कपड़ा तैयार किया जाता था। कुछ वर्षों के बाद शासन ने इसे ऑथराइज्ड कंट्रोलर के तहत ले लिया और इसे संचालित किया।
1974 में देशभर की 119 कपड़ा मिलों को गजट नोटिफिकेशन के जरिए सरकार ने अपने अधीन कर लिया और इस तरह से सारी संपत्ति एनटीसी की हो गई। इसके बाद से मिल का संचालन एनटीसी द्वारा किया जाने लगा और श्रमिकों को वीआरएस मिलने लगे। यहां की 7 एकड़ जमीन रहवासी थी और उस समय जो हालत चल रहे थे, यह देखकर श्रमिकों में इस बात का डर फैल गया कि अगर मिल को बंद कर दिया गया तो उनके आशियाने का क्या होगा। साल 2002 में हीरा मिल बंद हो गई तब से अब तक ये एनटीसी के अधीन थी और आज भी अमला यहां पर बैठता है। अब शासन के आदेश के बाद ये जमीन सरकारी हो गई है।
नहीं है रहवासियों का जिक्र
इस मामले में अपर कलेक्टर मृणाल मीणा का कहना है कि हीरा मिल की जमीन शासन की हो गई है यहां रहने वाले परिवार किसी भी तरह की चिंता नहीं करें क्योंकि प्रकरण में उनका उल्लेख नहीं किया गया था। जो जमीन खाली पड़ी है उसका उपयोग शासन और प्रशासन बड़े और जरूरी प्रोजेक्ट के लिए करेगा।