Harihar Milan: विश्व प्रसिद्ध बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में 25 नवंबर की रात अद्भुत नजारा देखने को मिलने वाला है। आज बाबा महाकाल रजत पालकी में सवार होकर द्वारकाधीश श्री हरि विष्णु को सृष्टि का भार सौंपने के लिए गोपाल मंदिर पहुंचेंगे। हरि से हर का मिलन होगा और विष्णु को सत्ता सौंपने के बाद महादेव कैलाश पर्वत पर लौट जाएंगे।
रात में निकलेगी सवारी
सत्ता के हस्तांतरण का यह अद्भुत नजारा रात में देखने को मिलता है। आज रात 11 बजे महाकाल मंदिर से बाबा महाकाल की सवारी निकलेगी जो आधी रात को गोपाल मंदिर पहुंचेगी और यहां हरि तथा हर की माला बदल कर सत्ता का हस्तांतरण किया जाएगा। इस खास क्षण में भोलेनाथ की बेलपत्र की माला द्वारकाधीश को और द्वारकाधीश की तुलसी की माला भोलेनाथ को अर्पित की जाती है। इस अवसर पर गोपाल मंदिर पर विशेष आतिशबाजी और लाइटिंग की जाती है। इस दिन पूरी उज्जैन नगरी हरि और हर के रंग में रंग जाती है।
सवारी का मार्ग
महाकालेश्वर की कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी पर निकलने वाली यह सवारी पूजन अर्चन के बाद सभा मंडप से 11 बजे प्रस्थान करेगी। इसके बाद महाकाल चौराहा, गुदरी और पटनी बाजार होते हुए यह गोपाल मंदिर पहुंचेगी। ढोल नगाड़ों के साथ सवारी में आतिशबाजी का दौर भी देखने को मिलेगा। गोपाल मंदिर पहुंचने के बाद भोलेनाथ को मंदिर के अंदर ले जाया जाता है, जहां भगवान शिव और विष्णु आमने-सामने बैठते हैं। दोनों मंदिर के पुजारी पूजन अर्चन करते हैं और भगवान को उनकी प्रिय वस्तुओं का भोग लगाया जाता है।
हरिहर मिलन की पौराणिक कथा
उज्जैन में वर्षों से निभाई जा रही हरिहर मिलन की इस परंपरा के पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। पौराणिक कथा के मुताबिक जब भगवान इंद्र ने अपना आसन बचाने के लिए श्री हरि विष्णु से मदद मांगी। तब भगवान वामन अवतार में राजा बलि के पास पहुंचे और दान में तीन पग भूमि मांगी। एक पग में उन्होंने धरती दूसरे में आकाश नाप लिया और जब तीसरे पग की बारी आई तो राजा बलि ने अपना सिर भगवान के आगे झुका दिया। इस तरह से भगवान विष्णु ने इंद्रदेव का भय दूर किया और राजा बलि से प्रसन्न होकर उनसे वरदान मांगने को कहा। तब राजा बलि ने यह कहा कि आप मेरे साथ पाताल में चलकर निवास करें।
भगवान विष्णु मान गए लेकिन उनके पाताल जाने से देवी लक्ष्मी चिंतित हो गई। इसके बाद वह राजा बलि के पास पहुंची और उन्हें राखी बांधकर उपहार स्वरूप भगवान विष्णु को मुक्त करने का वचन मांगा। यही कारण है कि देवशयनी एकादशी से लेकर 4 महीने तक भगवान योग निद्रा में रहते हैं। योग निद्रा में जाने से पहले वह सृष्टि का भार भगवान शिव को सौंपते हैं। उसके बाद देवउठनी एकादशी पर श्री हरि विष्णु के योग निद्रा से बाहर आने के बाद शिव पुनः उन्हें सृष्टि का भार सौंपते हैं और कैलाश चले जाते हैं।