भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। मध्य प्रदेश (Madhya pradesh) के इतिहास में सबसे अधिक सीटों पर हुआ यह उपचुनाव (By-election)कई दृष्टि से महत्वपूर्ण था। एक तरफ जहां इसे टिकाऊ वर्सेस बिकाऊ का मुद्दा बनाया गया था। वहीं दूसरी तरफ टेंपरेरी (Temporary) और परमानेंट (Permanent) सरकार की रेस में भी यह उपचुनाव तेजी से आगे बढ़ रहा था। हालांकि नतीजे के बाद यह तो साफ जाहिर हो गया कि जनता ने कांग्रेस (congress) के टिकाऊ वर्सेस बिकाऊ होते को पूरी तरह से नकार दिया है। लेकिन उपचुनाव के नतीजे एक और बात की तरफ इशारा कर रहे हो है। वह है चुनावी मैदान में उतरे कई उम्मीदवारों के राजनीतिक सफर का आकलन।
दरअसल मध्य प्रदेश की 28 सीटों पर उपचुनाव में 355 प्रत्याशी ने भाग्य आजमाया था। जिनमें से 277 उम्मीदवार 1.6% वोट भी हासिल नहीं कर पाए। इसी के साथ कई ऐसी सीटें हैं जहां बुरी तरह से उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई है। बता दे कि चुनावी मैदान में कुल वोट का 1.6 % वोट नहीं मिलने की स्थिति में उस उम्मीदवार की जमानत राशि जब्त हो जाती है। वहीं अगर बात करें तो मध्यप्रदेश के महगांव में सबसे अधिक 35 उम्मीदवारों की जमानत जप्त हुई है जबकि हाई वोल्टेज सीट डबरा में 12, मुरैना में 12, सांवेर में 11, सुरखी में 13 प्रत्याशी की जमानत जब्त हुई है।
वहीं इस उपचुनाव में नोटा का खासा प्रभाव देखने को मिला। 28 सीटों पर हुए चुनाव में 236 ऐसे उम्मीदवार है जिन्हें नोटा से भी कम वोट प्राप्त हुए है। हालांकि नोटा (NOTA) ने इस उपचुनाव में कोई उलटफेर नहीं किया लेकिन कई ऐसी सीटें हैं। जहां नोटा प्रतिशत के मामले में तीसरे या चौथे स्थान पर रहा। एक तरफ जहां अनूपपुर सीट पर नोटा तीसरे नंबर पर रहा। वही 28 सीटें ऐसी है। जहां नोटा को चौथा स्थान मिला है।
Read More: पुलिसकर्मी पर सरेआम गुण्डागर्दी का आरोप, वर्दी की धौंस दिखाकर मारपीट और एफआईआर
अगर इंदौर के सांवेर की बात करें तो यहां 13 प्रत्याशी ने अपनी किस्मत आजमाई थी। जिसमें भाजपा के सिलावट और कांग्रेस के गुड्डू को छोड़कर सभी की जमानत जब्त हो गई। सांवेर सीट पर भी भाजपा(BJP), कांग्रेस (Congress) और बसपा (BSP) के बाद नोटा को सबसे अधिक 1984 लोगों ने चुना।
वहीं 2018 की बात करें तो नोटा ने मध्यप्रदेश में बड़ा उलटफेर किया था। जहां 20 से अधिक सीटों पर नोटा ने प्रत्याशियों का खेल बिगाड़ा था। अब ऐसे में यह मत साफ है कि यह उपचुनाव राजनीतिक दलों के विश्लेषण के लिए एक सबक है। वहीं दूसरी तरफ नोटा के बढ़ते उपयोग को लेकर राजनीतिक दलों के लिए खतरे की घंटी।