भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। उप चुनाव (By-election) में वोटिंग के अंतिम आंकड़े आने के बाद भाजपा (BJP) कन्फर्ट जोन में पहुंच गई है। 28 सीटों पर 70.23% वोट पड़े हैं, जबकि वर्ष 2018 में यह आंकड़ा 72.93% था। यानी 2.70% वोटिंग कम हुई है। पिछला ट्रेंड कहता है कि ज्यादा वोटिंग से सत्तारूढ़ दल को नुकसान उठाना पड़ा था। इसी से कम वोटिंग से भाजपा उत्साहित दिख रही है। बुधवार को वोटिंग के अंतिम आंकड़ों पर भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी का कहना है कि वोटिंग के प्रतिशत में वृद्धि हुई है।
इससे उसकी सरकार (Government) की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है, नुकसान कांग्रेस को ही होना है। वे कहते हैं कि भाजपा को जीत के लिए केवल आठ सीटों की जरूरत है, जबकि कांग्रेस (Congress) को सभी 28 सीटें चाहिए। भाजपा यह भी दावा कर रही है कि उसे करीब 20 सीटें मिलने जा रही है। दो प्लस या दो माइनस हो सकती है। इसके बावजूद भाजपा सरकार सत्ता में बनी रहेगी।
मालवा- निमाड़ अंचल को संघ का गढ़ माना जाता है। यहां वोटिंग के प्रतिशत में वृद्धि हुई है। वहां संघ के स्वयंसेवकों की टोलियां चुनाव के पहले से सक्रिय हो गई थीं, जिसका फायदा भाजपा को मिला। वहीं, चंबल-ग्वालियर क्षेत्र में मतदान के कम प्रतिशत को लेकर भाजपा नेताओं का दावा है कि हमारे प्रतिबद्ध मतदाताओं ने तो वोटिंग की, लेकिन कांग्रेस के वोटर घर से ही नहीं निकले। उनका कहना है कि कांग्रेस के पास बूथ पर बैठाने के लिए एजेंट ही नहीं थे।
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क्या कहता है ट्रेंड ट्रेंड
बताते हैं कि वोट प्रतिशत में साढ़े तीन प्रतिशत से ज्यादा वृद्धि से नुकसान होता है, जोकि 5%से ज्यादा होने पर सत्तारूढ़ पार्टी को नकारा गया। 2003 में उमा भारती ने 10 साल की दिग्विजय सरकार पलटी थी। तब भाजपा को 10.89%वोट ज्यादा मिले थे। 2018 में मतदान 75.63%था जो 2013 की तुलना में 3.56 प्रतिशत ज्यादा था।
ये भी अहम
1985 में कांग्रेस ने 16.42%वोट ज्यादा लेकर सत्ता पाई थी। 1990 में भाजपा ने 5.76%वोट ज्यादा लेकर सत्ता पाई। 1993 में कांग्रेस, भाजपा से 1.85%वोट ज्यादा लेकर सत्ता में थी। 1998 में 1.31%वोट ज्यादा लेकर दिग्विजय सरकार बरकरार रही, लेकिन 2003 में भाजपा ने 10.89 % वोट ज्यादा लेकर कब्जा किया।