बैतूल। मध्य प्रदेश के सियासी रण में हर दल अपनी जीत सुनिश्चित समझ रहा है, हालांकि चुनौतियां भी बहुत हैं। जिन से पार पाना सभी पार्टियों को भारी पड़ रहा है। खासकर उन से ज्यादा चुनौती मिल रही है जो कभी अपने हुआ करते थे और आज चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं। सियासत में कई उत्पाद भी हैं कई सहयोग भी है। एेसी एक सीट का सहयोग प्रचलित है, जहां जिस पार्टी ने जीत दर्ज की प्रदेश में सरकार भी उसी की बनी है अभी तक हुए चुनाव में कुछ इस तरह का सहयोग सामने आया है।
प्रदेश की राजनीति में कई मिथक जुड़े हैं। ऐसा ही एक संयोग जुड़ा है बैतूल विधानसभा सीट से। कहा जाता है जिस पार्टी के उम्मीदवार इस सीट पर जीत हासिल करते हैं उसी पार्टी की सरकार भी बनती है। बीते तीन बार के नतीजे तो यही हाल बयान कर रहे हैं। इसलिए विधानसभा चुनाव में इस बार बैतूल जिले में बीजेपी और कांग्रेस सबसे अधिक जोर लगा रहे हैं। इतिहास में झांक कर देखें तो तस्वीर साफ होती नजर आएगी।
प्रदेश में 1962 में हुए विधानसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस के द्वारका प्रसाद मिश्र की सरकार बनी थी। उसी समय बैतूल में कांग्रेस के दीपचंद गोठी विधायक चुने गए थे। वर्ष 1967 में जब संविद सरकार बनी तो बैतूल से जीडी खंडेलवाल विधायक चुने गए थे। वर्ष 1972 में बैतूल के मतदाताओं ने कांग्रेस के मारोति पांसे को विधायक चुना था, तो प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और प्रकाशचंद सेठी मुख्यमंत्री बने थे। वर्ष 1977 में जब भाजपा की सरकार बनी तो बैतूल की जनता ने भाजपा से जुड़े माधव नासेरी को विधायक चुना था।
यही सिलसिला लगातार बढ़ता रहा और 1980 के विधानसभा चुनाव में बैतूल विधानसभा के वोटरों ने डॉ. अशोक साबले को विधायक चुना और प्रदेश में एक बार फिर कांग्रेस सत्ता में आई और उस समय अर्जुनसिंह मुख्यमंत्री बने थे। पांच साल बीद फिर एक बार नतीजों ने चौंकाया। कांग्रेस के उम्मीदवार ने बैतूल जिले में बाजी मारी और 85 मोतीलाल वोरा के नेतृत्व में कांग्रेस की ही सरकार काबिज हुई थी। लेकिन जनता ने 90 के चुनाव में तख्तापलट कर दिया था। भाजपा विधायक भगवत पटेल को जनता ने मौका दिया। तब सुंदरलाल पटवा मुख्यमंत्री बने।
लेकिन बाजपा का जादू अधिक समय तक बरकरार नहीं रहा। तीन साल बाद फिर चुनाव हुए और 93 बैतूल के वोटरों ने कांग्रेस के डॉ. अशोक साबले को मौका दिया और दिग्विजय सिंह की सरकार वजूद में आई। दूसरी बार भी कांग्रेस को जब जीत मिली तब बैतूल में कांग्रेस उम्मीदवार को जनता ने चुना था। विभाजन के बाद हुए चुनाव में नतीजे बदले और 2003 के चुनाव में भाजपा के शिवप्रसाद राठौर को विधायक चुना तो उमा भारती की सरकार प्रदेश की सत्ता पर काबिज हो गई। फिर ये सिलसिला जारी रहा। 2008 में यहां से भाजपा के अलकेश आर्य जीते और शिवराज सिंह सरकार बनाने में कामयाब हुए। यही 2013 में भी हुआ। भाजपा के हेमंत खंडेलवाल को बैतूल विधानसभा से जीत मिली थी। और तीसरी बार प्रदेश में भाजपा की सरार बनी थी। लेकिन इस बार के नतीजे क्या होंगे यह तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन इस मिथक को जिले में ही नहीं पूरे प्रदेश में राजनीति के जानकार अहम मानते हैं।