मप्र की अंतिम विधानसभा जावद से कांग्रेस पिछले 10 साल से निर्दलीय उम्मीदवार की वजह से जीती हुई बाजी हार रही है। कांग्रेस की इसी फूट का फायदा भाजपा को मिलता है और यहीं कारण है चौथी बार भी भाजपा ने विजय हासिल की।
नीमच। श्याम जाटव| पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा के गृहनगर जावद में उनके पुत्र ओमप्रकाश सकलेचा ने चौथी बार कांग्रेस को पराजित किया। यहां से चुनाव से पहले कांग्रेंस का माहौल बनता है लेकिन ऐनवक्त पर पार्टी मे आपसी सिर फुटव्वल की वजह से हार का मुंह देखना पड़ रहा है। ऐसा एक बार नहीं पिछले दो चुनाव से लगातार हो रहा है। कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर बागी के चुनाव लडऩे से पार्टी को नुकसान हो रहा है।
-बगावत से बिगड़े समीकरण
2008 में कांग्रेस ने राजकुमार अहीर को टिकट दिया। अहीर को भाजपा विधायक ओमप्रकाश सकलेचा ने 4765 वोट से हरा दिया। इसके बाद 2013 में कांग्रेस ने नीमच नगरपालिका के पूर्व अध्यक्ष रघुराजसिंह चौरडिय़ा पर भरोसा किया। चौरडिय़ा को टिकट मिलने पर अहीर ने कांग्रेस से बगातव कर दी और निर्दलीय चुनाव लड़ा। इस चुनाव में अहीर को 42503 वोट मिले। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी चौरडिय़ा को 19216 मिले। इस बार कांग्रेस की बहुत बुरी गत हुई और उसकी जमानत तक जब्त हो गई। कांग्रेस और निर्दलीय के वोट जोड़े तो कुल 61719 मिले। यानि भाजपा के सखलेचा को 5565 वोट से हरा सकते थे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कांग्रेस की फूट का लाभ सखलेचा को मिला। पीसीसी चीफ कमलनाथ ने अपने भरोसेमंद अहीर को टिकट दिलाया। नाथ ने ही अहीर की वापसी राहुल गांधीकी नोटशीट पर कराई थी।
-कांग्रेस का ऐसे बिगड़ा खेल…..
2018 में अहीर को मैदान में उतारा लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट के इंदौर के कारोबारी समंदर पटेल ने अहीर का खेल बिगाड़ दिया। पटेल भी यहां से कांग्रेस से टिकट मांग रहे थे लेकिन उन्हें नहीं मिला। बागी होकर चुनाव लड़ा और 33712 वोट प्राप्त किए। वहीं कांग्रेस के अहीर को 48045 तो भाजपा के सकलेचा को 52316 वोट मिले। अगर बागी और कांग्रेस के वोट का जोड़ करें तो 81757 में से सखलेचा को मिले वोट 52316 कम करने पर 29441 से कांग्रेस जीत सकती थी।
-सकलेचाकिस्मत के धनी
विधायक सकलेचा चौथी बार चुनाव जीते है और इनके पिता स्वर्गीय वीरेंद्र कुमार सखलेचा ने कुल 8 चुनाव लड़े और 5 बार विजयी हुए। जबकि ओमप्रकाश एक भी चुनाव नहीं हारे। जानकारों का कहना है कि सकलेचा को हमेशा कांग्रेस की गुटबाजी का लाभ मिला है और इस बार भाजपा की सरकार बनती तो सकलेचा कैबिनेट मंत्री बनना निश्चित था।
-अहीर को नाथ से आस
सूत्रों का कहना है कि राजकुमार अहीर भले ही तीन चुनाव हार गए है लेकिन क्षेत्र में उनकी सक्रियता की वजह से मुख्यमंत्री कमलनाथ कहीं न कही बड़ी जिम्मेदारी दे सकते है। मालूम हो कि अहीर को टिकट दिलाने के लिए नाथ आलाकमान से अड़ गए थे और अंतत: वे सफल भी हुए।