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Fri, Dec 5, 2025

भोपाल गैस त्रासदी: 41 साल पर अब भी वही सवाल “ज़िम्मेदार कौन”?

Written by:Banshika Sharma
दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक भोपाल गैस त्रासदी के 41 साल बाद भी इसकी जिम्मेदारी को लेकर विवाद कायम है। अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी ड़ाउ केमिकल पर अभी भी यूनियन कार्बाइड की विरासत के तौर पर दायित्वों का सवाल बना हुआ है, जिसे लेकर भारत और अमेरिका की अदालतों के रुख में अंतर है।
भोपाल गैस त्रासदी: 41 साल पर अब भी वही सवाल “ज़िम्मेदार कौन”?

भोपाल गैस त्रासदी को 41 साल बीत चुके हैं, लेकिन इस भयावह घटना के लिए कॉरपोरेट जिम्मेदारी का सवाल आज भी अनसुलझा है। वर्ष 1984 में हुई इस त्रासदी को दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं में गिना जाता है। अब यह प्रश्न गहरा गया है कि वर्तमान की अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी ड़ाउ केमिकल की भूमिका उस यूनियन कार्बाइड कंपनी से कैसे जुड़ती है, जिसके प्लांट से मिथाइल आइसोसायनेट गैस का रिसाव हुआ था।

त्रासदी के पीड़ितों और भारत सरकार का तर्क है कि ड़ाउ केमिकल ने यूनियन कार्बाइड का अधिग्रहण करके उसकी पुरानी जिम्मेदारियां भी विरासत में ली हैं। हालांकि, ड़ाउ इस तर्क को स्वीकार नहीं करती और अपना बचाव विभिन्न कानूनी आधारों पर करती है।

1984 का हादसा और शुरुआती कानूनी पहल

यह दुखद घटना 1984 में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) के भोपाल स्थित प्लांट में हुई थी। उस समय यूसीआईएल में अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (UCC) की बड़ी हिस्सेदारी थी। 1984 में ड़ाउ केमिकल का यूसीसी या यूसीआईएल से कोई सीधा संबंध नहीं था। ड़ाउ केमिकल आज भी अदालतों में इसी तथ्य पर ज़ोर देती है। कंपनी का कहना है कि 1984 में वह न तो प्लांट की मालिक थी और न ही उसका संचालन से कोई सरोकार था।

सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, 1989 में भारत सरकार और यूसीसी के बीच 470 मिलियन डॉलर (लगभग 3,900 करोड़ रुपये) का समझौता हुआ था। इसे ‘फुल एंड फाइनल सेटलमेंट’ यानी पूर्ण और अंतिम निपटान माना गया था। हालांकि, गैस पीड़ितों ने इस समझौते को अपर्याप्त बताया और लंबे समय तक विरोध प्रदर्शन जारी रखा। विवाद में एक और मोड़ तब आया, जब यूसीसी ने 1994 में यूसीआईएल में अपनी हिस्सेदारी बेच दी। इसके बाद कंपनी का नाम बदलकर एवरेडी इंडस्ट्रीज कर दिया गया।

Dow केमिकल का प्रवेश और जिम्मेदारी का सवाल

परिस्थिति में बड़ा बदलाव 2001 में आया, जब ड़ाउ केमिकल ने यूसीसी का अधिग्रहण कर लिया। इसी बिंदु पर ड़ाउ और यूसीसी का सीधा कॉर्पोरेट संबंध स्थापित हुआ। आज यूसीसी ड़ाउ की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है। भारत सरकार और गैस पीड़ित संगठन इसी कॉर्पोरेट लिंक को आधार बनाकर दलील देते हैं कि ड़ाउ ने यूसीसी की वैश्विक संपत्तियों के साथ-साथ उसकी पिछली जिम्मेदारियों को भी अपने ऊपर लिया है।

दूसरी ओर, ड़ाउ इस तर्क से सहमत नहीं है। कंपनी का कहना है कि 1989 का समझौता अंतिम था, यूसीआईएल 1994 में बेची जा चुकी थी, और भारत की अदालतों में उसके खिलाफ कोई सीधा आपराधिक दायित्व नहीं बनता है।

भारत और अमेरिकी अदालतों का अलग-अलग रुख

इस विवाद में कानूनी लड़ाई एक महत्वपूर्ण पहलू है। भारत की अदालतों, जिनमें जिला अदालत से लेकर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक शामिल हैं, ने ड़ाउ को कई बार नोटिस भेजे हैं और जवाब मांगा है। ये मामले अभी भी लंबित हैं।

हालांकि, अमेरिकी अदालतों का रुख अलग रहा है। उन्होंने ड़ाउ को राहत देते हुए कहा है कि कंपनी को यूसीसी की पुरानी जिम्मेदारियों के लिए जवाबदेह नहीं ठहराया जा सकता। इन दो अलग-अलग देशों की कानूनी व्याख्याओं ने पूरे विवाद को और जटिल बना दिया है।

वर्तमान में ड़ाउ केमिकल की भारत में कई एक्टिव यूनिट्स  हैं, जिनमें महाराष्ट्र के तालोजा और रत्नागिरी और तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले में स्थित प्लांट शामिल हैं। इसके बावजूद, भोपाल गैस त्रासदी की जिम्मेदारी और मुआवजे को लेकर ड़ाउ-यूसीसी विवाद अभी भी तय नहीं हुआ है। त्रासदी के 41 साल बाद भी न्याय, जिम्मेदारी और कॉर्पोरेट उत्तरदायित्व पर देश और दुनिया में चर्चा जारी है।