शिमला, डेस्क रिपोर्ट। सुप्रीम कोर्ट ने पेंशन से जुड़े एक मामले में अहम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए प्रार्थी को उसके पति की ओर से सरकार को दी गई सेवाओं की एवज में पेंशन देने और पेंशन का बकाया आठ सप्ताह के भीतर देने के आदेश भी जारी किए गए हैं। वही साफ कहा है कि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को आठ वर्ष सेवाकाल पर भी अब पेंशन दी जाएगी।
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सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश के सुंदर सिंह नामक मामले में 10 वर्ष दिहाड़ीदार के साथ नियमित सेवा करने वाले पेंशन के हकदार हैं या नहीं इस पर अपना रुख साफ करते सुनवाई करते हुए कहा कि 5 साल से अधिक दिहाड़ीदार सेवा को एक वर्ष की नियमित सेवा के बराबर माना जाएगा और यदि कर्मचारी की दिहाड़ीदार सेवा का 20 फीसदी और नियमित सेवा के कुल वर्ष मिलाकर आठ वर्ष का कार्यकाल भी बनता है, तो भी सरकारी कर्मी पेंशन लेने का हक रखेगा। इसे न्यूनतम पेंशन के लिए 10 साल के बराबर मान लिया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट की ओर से सुंदर सिंह बनाम राज्य सरकार मामले में पारित फैसले को लेकर प्रदेश हाई कोर्ट की एकल पीठ व खंडपीठों के फैसलों में विरोधाभास उत्पन्न हो गया था, जिसके कारण मामले को तीन जजों की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए रखा था। मगर प्रार्थी ने हाई कोर्ट के तीन जजों की पीठ के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई थी, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने निरस्त करते हुए प्रार्थी बालो देवी को उसके पति की ओर से राज्य सरकार को दी गई सेवाओं की एवज में पेंशन देने का आदेश जारी किया। पेंशन का एरियर आठ सप्ताह के भीतर देना होगा।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को लेकर हाईकोर्ट की एकल पीठ व खंडपीठों के फैसलों में विरोधाभास उत्पन्न हो गया था। इस कारण मामले को तीन जजों की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए रखा गया। एकल पीठ व एक खंडपीठ का यह मत था कि अगर नियमित सेवा के साथ दिहाड़ीदार सेवा का लाभ देते हुए आठ वर्ष की सेवा का कार्यकाल पूरा हो जाता है तो उस स्थिति में सरकारी कर्मी पेंशन का हक रखेगा। सुंदर सिंह के फैसले में आठ साल की सेवा को 10 वर्ष आंकने का भी जिक्र किया है, जबकि अन्य खंडपीठ का यह मत था कि नियमित सेवा के साथ दिहाड़ीदार सेवा का लाभ देते हुए अगर 10 वर्ष की सेवा का कार्यकाल पूरा होता है, तभी सरकारी कर्मी नियमित पेंशन लेने का हक रखेगा।
ये है पूरा मामला
प्रार्थी का पति सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य विभाग में चतुर्थ श्रेणी दिहाड़ीदार कार्यरत था। 10 साल के बाद एक जनवरी 2000 से उसे नियमित किया गया था। छह साल दो महीने की नियमित सेवा पूरी करने के बाद वह सेवानिवृत्त हो गया। छह साल दो महीने की नियमित सेवा के चलते उसे विभाग ने पेंशन देने से मना कर दिया।इस कारण उसने हिमाचल हाई कोर्ट के समक्ष याचिका दाखिल की और फिर यहां से भी राहत ना मिलने पर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और अंतत: राहत मिली।