Durga Parameshwari Temple: भारत एक ऐसा देश है, जहां तकरीबन 20 लाख से ज्यादा मंदिर हैं। हालांकि, ये संख्या इससे कई ज्यादा भी हो सकती है। लेकिन कुछ प्रसिद्ध जगह ऐसी है जिनका अपना इतिहास है और यह अपने अंदर कोई ना कोई राज समेटे हुए है। इन जगहों से लाखों लोगों की आस्था जुडी हुई है और यहां की कहानी बहुत ही दिलचस्प है। आज हम आपको भारत के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताते हैं, जिसके बारे में शायद ही आपने पहले कभी सुना होगा।
यह मंदिर कर्नाटक के मंगलौर से 30 किलोमीटर दूर मौजूद है जो दुर्गा परमेश्वरी के नाम से पहचाना जाता है। नवरात्रि के दिनों में यहां पर आस्था का सैलाब उमड़ता है और इस दौरान यहां जो किया जाता है वह किसी को भी हैरान कर सकता है। दरअसल, यहां आने वाले भक्त 9 दिन में आग का खेल खेलते हैं, जिसके पीछे एक बड़ी वजह मानी जाती है। चलिए आज हम आपको इस मंदिर के इतिहास और यहां खेले जाने वाले आग के खेल के पीछे की वजह के बारे में बताते हैं।
आग का खेल
इस मंदिर में नवरात्रि के दिनों में आग का खेल खेले जाने की परंपरा है। दूर-दूर से लोग इसमें शामिल होने के लिए पहुंचते हैं और यहां जो नजारा दिखाई देता है वह एक पल के लिए किसी के भी रोंगटे खड़े कर सकता है। दरअसल, यह एक परंपरा है जिसे अग्नि केली के नाम से पहचाना जाता है, जो यहां के दो गांव कलत्तुर और आतुर के बीच होती है। इन दोनों गांव के निवासी एक दूसरे पर नारियल की छाल से बनी हुई मशाल फेंकते हैं और 15 मिनट तक यह दौर चलता है। इस परंपरा से जुड़ी मान्यता के मुताबिक जो भी इसमें शामिल होता है उसके जीवन के सारे दुख दर्द माता की कृपा से दूर हो जाते हैं।
नौ अवतारों के दर्शन
इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां पर माता के नौ अवतारों के दर्शन किए जा सकते हैं। यहां गोपुरा नाम का एक प्रवेश द्वारा है जो काफी आकर्षक है। इसकी ऊंचाई 108 फिट है जो यहां आने वाले हर भक्त का ध्यान अपनी और खींच लेता है। जब आप मंदिर में प्रवेश करेंगे तो यहां आपको माता दुर्गा के 9 स्वरूपों के दर्शन करने के लिए मिलेंगे।
मंदिर का इतिहास
मंदिर के इतिहास की बात करें तो यह काफी पुराना है और इसका पौराणिक महत्व भी है। बताया जाता है कि एक समय अरुणासुर नमक राक्षस को ब्रह्मा जी ने यह वरदान दिया कि उसे ना ही दो पैरों वाला और ना ही चार पैरों वाला जीव मार पाएगा। यह वरदान पाकर राक्षस ने धरती पर हाहाकार मचाना शुरू कर दिया। दुष्ट के आतंक से धरती वासी परेशान हो गए और उनके इस दुख का निवारण करने के लिए माता दुर्गा धरती पर प्रकट हुईं। माता दुर्गा और राक्षस के बीच युद्ध चला अरुणासुर देवी दुर्गा के पीछे पड़ गया और माता ने चट्टान का स्वरूप धारण कर लिया। अरुणासुर उस चट्टान पर पैर रखकर उसे कुचलना वाला था कि तभी मधुमक्खियां ने उस पर आक्रमण कर उसका अंत कर दिया। ब्रह्मा जी द्वारा दिए गए वरदान के मुताबिक राक्षस को दो और चार पैर वाला जीव नहीं मार सकता था, लेकिन मधुमक्खियां इससे बिल्कुल अलग है। जब राक्षस का अंत हुआ तो ऋषि मुनियों ने उस जगह पर दुर्गा परमेश्वरी मंदिर का निर्माण किया।