Dussehra 2024 : आज देशभर में दशहरा धूमधाम और हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। दशहरा, जिसे विजयादशमी भी कहते हैं, भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को ये त्योहार मनाया जाता है जो आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर में आती है। इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था और देवी दुर्गा ने महिषासुर को पराजित किया था।
दशहरा असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इसका धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व है। इस त्योहार की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह असत्य पर सत्य, अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है। भगवान राम ने इस दिन रावण को पराजित किया था और इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में देखा जाता है। इसी प्रकार, देवी दुर्गा ने दशहरे के दिन महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था जो शक्ति और साहस का प्रतीक है।
दशहरा 2024 : पूजन विधि और मुहूर्त
आज 12 अक्टूबर को पूरे भारत में दशहरा मनाया जा रहा है। भारत के विभिन्न हिस्सों में दशहरा अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाता है, जबकि बंगाल और पूर्वी भारत में दुर्गा पूजा के बाद माँ दुर्गा की मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है। दक्षिण भारत में इसे शक्ति और विजय का पर्व माना जाता है और इस दिन शस्त्रों और औजारों की पूजा की जाती है। मान्यता है कि आज के दिन विशेष मुहूर्त में पूजा करने से मनोकामनाएँ पूर्ण होती है। आइए जानते हैं आज किस तरह से पूजा की जाती है और आज को पूजन का शुभ मुहूर्त।
पूजन विधि
- शस्त्र पूजा (आयुध पूजा): शस्त्रों और औजारों की पूजा शक्ति और साहस का प्रतीक है। इस दिन विशेष रूप से युद्ध और सुरक्षा से जुड़े लोग अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं।
- राम–पूजा और देवी दुर्गा की पूजा: भगवान राम और देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। रामलीला के मंचन के बाद रावण के पुतले का दहन किया जाता है।
- रावण दहन: इस दिन रावण, कुंभकर्ण, और मेघनाद के पुतलों का दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।
- व्रत और आरती: भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और शाम को दीप जलाकर विशेष आरती करते हैं।
आज का मुहूर्त
- विजय मुहूर्त: दोपहर 2:03 से 2:49 बजे तक (46 मिनट)
- अपराह्न पूजा का समय: दोपहर 1:17 से 3:35 बजे तक
- रावण दहन का समय: शाम 5:54 से 7:27 बजे तक
दशहरे से जुड़ी परंपराएं और रीति-रिवाज
1. रावण दहन : दशहरे की सबसे महत्वपूर्ण परंपरा रावण के पुतले का दहन है। इस दिन को भगवान राम की रावण पर विजय के रूप में मनाया जाता है, जो रामायण के अनुसार लंका का राजा था। रावण के साथ-साथ उसके भाई कुंभकर्ण और पुत्र मेघनाद के पुतले भी जलाए जाते हैं। इस परंपरा के पीछे संदेश है कि बुराई चाहे कितनी भी शक्तिशाली हो, अच्छाई हमेशा जीतती है।
2. रामलीला : दशहरे के दौरान कई स्थानों पर रामलीला का आयोजन होता है, जो रामायण की कथा पर आधारित नाटक है। यह नाटक भगवान राम के जीवन और उनके संघर्षों का चित्रण करता है, विशेषकर उनके वनवास और रावण के साथ युद्ध के प्रसंगों पर ध्यान केंद्रित करता है। रामलीला का समापन दशहरे के दिन रावण दहन के साथ होता है।
3. आयुध पूजा : दक्षिण भारत में दशहरे को आयुध पूजा के रूप में भी मनाया जाता है। इस परंपरा में हथियार, औजार और वाहनों की पूजा की जाती है, जो इस बात का प्रतीक है कि हर कार्य में सफलता के लिए उपकरण और साधनों का महत्व है। इसे शस्त्र पूजा भी कहा जाता है।
4. शमी वृक्ष की पूजा : महाराष्ट्र, कर्नाटक, और उत्तर भारत के कई हिस्सों में दशहरे के दिन शमी वृक्ष की पूजा की जाती है। यह मान्यता है कि महाभारत में पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान अपने शस्त्र शमी वृक्ष के अंदर छिपाए थे। शमी वृक्ष की पूजा समृद्धि और विजय का प्रतीक मानी जाती है, और लोग एक-दूसरे को शमी के पत्ते भेंट करते हैं, जिसे “सोना” कहा जाता है।
5. नीलकंठ पक्षी को देखना : कई जगहों पर दशहरे के दिन नीलकंठ पक्षी को देखने की परंपरा है। इसे भगवान शिव का रूप माना जाता है, और ऐसा विश्वास है कि दशहरे के दिन नीलकंठ का दर्शन शुभ होता है और इससे जीवन में समृद्धि और सौभाग्य आता है।
6. शस्त्र पूजन और नए कार्यों की शुरुआत : दशहरे को शक्ति और साहस का त्योहार माना जाता है। इस दिन लोग अपने शस्त्रों और औजारों की पूजा करते हैं, खासकर युद्ध और सुरक्षा से जुड़े लोग। व्यापारियों और किसानों के लिए यह दिन विशेष होता है क्योंकि इसे नए कार्यों और परियोजनाओं की शुरुआत के लिए शुभ माना जाता है।
7. रथ यात्रा : पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, और असम जैसे राज्यों में दुर्गा पूजा के बाद दशहरे के दिन माँ दुर्गा की मूर्तियों का विसर्जन होता है। दुर्गा पूजा का समापन रथ यात्रा और मूर्ति विसर्जन से होता है, जहाँ भक्त माँ दुर्गा को विदा करते हैं।
8. दुर्गा पूजा : बंगाल और पूर्वोत्तर भारत में दशहरे का सीधा संबंध दुर्गा पूजा से है। दुर्गा पूजा के नौ दिन (नवरात्रि) के बाद दशहरे के दिन माँ दुर्गा की मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है। इसे विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है, जो देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय का प्रतीक है।
9. सैनिकों के बीच उत्सव : दशहरा पारंपरिक रूप से शूरवीरों और सैनिकों का भी त्योहार माना जाता है। पुराने समय में राजा इस दिन अपनी सेना का निरीक्षण करते थे और शस्त्र पूजन करते थे। आज भी कई स्थानों पर पुलिस और सेना में इस दिन विशेष आयोजन होते हैं।
10. नए वस्त्र और मिठाइयाँ : दशहरे के दिन लोग नए वस्त्र धारण करते हैं और एक-दूसरे को मिठाइयाँ और उपहार देते हैं। यह दिन सामाजिक एकता और उल्लास का प्रतीक भी माना जाता है।