सीआरईए ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि ‘‘कोयले से संचालित होने वाले बिजली संयंत्र, बिजली की मांग में मामूली वृद्धि को भी झेलने की स्थिति में नहीं हैं। क्योंकि बिजली संकट से बचने के लिए कोयला परिवहन की योजना पहले से बनाने की जरूरत है।’’ केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) का अनुमान है कि अगस्त में ऊर्जा की अधिकतम मांग 214 गीगावॉट पर पहुंच जाएगी, इसके अलावा औसत बिजली की मांग भी मई के दौरान 1,33,426 मिलियन यूनिट (एमयू) से अधिक हो सकती है।
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वहीं, सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर ने कहा है कि दक्षिण-पश्चिम मानसून की शुरुआत के बाद खदानों से बिजली स्टेशनों तक कोयले के खनन और परिवहन में और बाधा आएगी। सीआरईए ने कहा है कि यदि मानसून से पहले कोयले के स्टॉक को पर्याप्त स्तर तक नहीं भरा जाता है, तो देश जुलाई-अगस्त 2022 में एक और बिजली संकट की ओर बढ़ सकता है। रिपोर्ट में कहा गया कि हाल में देश में जो बिजली संकट आया था उसकी वजह कोयला उत्पादन नहीं बल्कि इसका ‘‘वितरण और अधिकारियों की उदासीनता’’ थी। इसमें कहा गया, ‘‘आंकड़ों से यह जाहिर है कि पर्याप्त कोयला खनन के बावजूद ताप बिजली संयंत्रों में कोयले का पर्याप्त भंडार नहीं रखा गया।’’ भारत में 2021-22 में कोयले का 77.72 करोड़ टन का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ जो इससे एक साल पहले के 71.60 करोड़ टन उत्पादन की तुलना में 8.54 प्रतिशत अधिक है।