अहमदाबाद, डेस्क रिपोर्ट। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सरकारी डिग्री कॉलेज की पूर्व प्रवक्ता डॉ. सुशीला जोशी मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने डॉ. सुशीला जोशी को उनकी सेवानिवृत्ति के 3 साल बाद सेवा में बहाल मानते हुए नियमित करने का आदेश दिया है। इतना ही नहीं हाई कोर्ट ने प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा एवं निदेशक उच्च शिक्षा के आदेश को निरस्त करते हुए वेतन एवं अन्य भत्तों आदि के सभी बकायों के भुगतान करने का भी निर्देश दिया।12 हफ्तों में आदेश का पालन करने को कहा गया है।
दरअसल, याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अरविंद कुमार सिंह ने बताया कि याची को 1987 में उत्तरकाशी के सरकारी डिग्री कॉलेज में अंशकालिक व्याख्याता के रूप में नियुक्त किया गया था, उन्हें वर्ष 2000 में सरकारी डिग्री कॉलेज हमीरपुर में स्थानांतरित कर दिया गया था और उन्हें एक तदर्थ व्याख्याता के रूप में भी नियुक्त किया गया था। जब याची ने नियमितीकरण के लिए आवेदन किया, तो उच्च शिक्षा निदेशक ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि याची लेक्चरर पद के लिए निर्धारित योग्यता नहीं रखती है।
इतना ही निदेशक ने कहा कि लेक्चरर पद के लिए इंटरमीडिएट और ग्रेजुएशन में औसत 55 प्रतिशत या दोनों में अलग-अलग 50-50 प्रतिशत अंक होने चाहिए। जबकी याची के इंटरमीडिएट में 50 प्रतिशत और बीए में 45 प्रतिशत अंक हैं, जबकी 30 मार्च 1987 को जारी शासनादेश में सरकार ने न्यूनतम शैक्षिक अहर्ता को शिथिल कर दिया है। वही पीएचडी धारकों के लिए न्यूनतम अंकों की आवश्यकता उन्हें नहीं है और याची ने 1986 में पीएचडी की डिग्री हासिल की। लंबे समय तक मामले पर कोई फैसला नहीं लिया गया और याची 2019 में रिटायर हो गई।
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इस पर हाई कोर्ट न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने सुनवाई करते हुए कहा कि शासनादेश में स्पष्ट किया गया है कि MA में 55% और BA में 45 % अंक नियमितीकरण के लिए अच्छी शैक्षणिक योग्यता मानी जाएगी। याची के पास इतने अंक और पीएचडी की डिग्री है ऐसे में इंटरमीडिएट के अंक मायने नहीं रखते। कोर्ट ने याची को उसी तिथि से सेवा नियमितीकरण का लाभ देने का निर्देश दिया है, जिस तिथि से उसके समकक्षों को नियमित किया गया था। वही 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज का भुगतान 12 हफ्तों में करने का आदेश दिया है, साथ ही कहा कि राज्य सरकार चाहे तो ब्याज की रकम की वसूली विलंब के लिए जिम्मेदार अधिकारियों से कर सकती है।