महाकुंभ की शुरुआत कैसे हुई? 12 साल में ही कुंभ क्यों होता है और चार जगहों पर ही कुंभ क्यों होता है, यह सवाल सभी के मन में उठता है। दरअसल, पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के बाद से ही कुंभ की शुरुआत हुई। कुंभ का उल्लेख ऋग्वेद, अथर्ववेद और यजुर्वेद में भी मिलता है।
समुद्र मंथन के दौरान कुल 14 मुख्य रत्न निकले थे। मंथन में सबसे अंत में अमृत निकला था जिसे देवताओं को ग्रहण करवाया गया। इन 14 रत्नों में पहला रत्न विष, दूसरा कामधेनु, तीसरा उच्चै:श्रवा घोड़ा, चौथा ऐरावत हाथी, पाँचवाँ कौस्तुभ मणि, छठा कल्पवृक्ष, सातवाँ अप्सरा रंभा, आठवाँ देवी लक्ष्मी, नवाँ वारुणी देवी, दसवाँ चंद्र, ग्यारहवाँ पारिजात वृक्ष, बारहवाँ पाञ्चजन्य शंख, तेरहवाँ धन्वंतरि और चौदहवाँ अमृत कलश था।
कैसे हुई कुंभ की शुरुआत?
दरअसल, एक समय देवराज इंद्र अहंकारी हो गए थे, जिसके बाद ऋषि दुर्वासा ने उन्हें श्राप दिया था कि इंद्र श्रीहीन हो जाएंगे। इसके चलते स्वर्ग का ऐश्वर्य, देवताओं का धन और वैभव सब कुछ नष्ट हो गया। इसके बाद देवता भगवान विष्णु से मदद मांगने पहुंचे। भगवान विष्णु ने उन्हें समुद्र मंथन करने की सलाह दी और कहा कि अमृत प्राप्त होने पर देवता अमर हो जाएंगे और स्वर्ग का वैभव भी लौटेगा। भगवान विष्णु ने मंथन के लिए देवताओं और असुरों को साथ आने को कहा। असुरों के राजा दैत्यराज बली अमृत और रत्न पाने के लिए मंथन के लिए तैयार हो गए। इसके बाद मंदराचल पर्वत और वासुकी नाग की सहायता से समुद्र मंथन किया गया। इस मंथन में 14 मुख्य रत्न निकले।
12 साल में ही क्यों होता है कुंभ?
पुराणों के मुताबिक, समुद्र मंथन के दौरान जब भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए, तो देव और दानवों में अमृत पाने के लिए युद्ध शुरू हो गया। यह युद्ध 12 साल तक चला। इस दौरान आकाश से धरती पर अमृत की चार बूंदें गिरीं, जो उज्जैन की शिप्रा, प्रयागराज की गंगा-यमुना-संगम, नासिक की गोदावरी और हरिद्वार में गंगा में जा गिरीं। इसके बाद से हर 12 साल में इन जगहों पर कुंभ होता है। साथ ही, इस अमृत कुंभ को जागृत करने की परंपरा भी शुरू हुई। ऋग्वेद, अथर्ववेद और यजुर्वेद में कुंभ का उल्लेख किया गया है। ऋग्वेद में इस पर्व का उल्लेख एक विशेष रूप में मिलता है।