NCERT : आखिर क्या है वर्ण व्यवस्था विवाद, RTI में बड़ा खुलासा

नई दिल्ली,अमित सेंगर। पुरातन काल से चली आ रही वर्णव्यवस्था पर बहस कोई नई नही है, सदियों से वर्णव्यवस्था लोग अपने-अपने विचार व्यक्त करते आ रहे है। वहीं ज्यादातर लोगो ने वर्ण व्यवस्था पर तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर ही पेश किया गया है। वहीं कक्षा 6 की NCERT पुस्तक के अध्याय 5 में वर्ण व्यवस्था पर जो NCERT के द्वारा छात्रों को पढाया जा रहा वहीं आज समाज में आपसी मतभेद का सबसे बढ़ा कारण बनता जा रहा है,

बता दें कि कक्षा 6 की NCERT पुस्तक के पृष्ठ संख्या 47-48 में लिखा है, “पुरोहितों ने लोगों को चार वर्णों में विभाजित किया , जिन्हें वर्ण कहते हैं । उनके अनुसार प्रत्येक वर्ण के अलग – अलग कार्य निर्धारित थे। पहला वर्ण ब्राह्मणों का था। उनका काम वेदों का अध्ययन – अध्यापन और यज्ञ करना था जिनके लिए उन्हें उपहार मिलता था । दूसरा स्थान शासकों का था , जिन्हें क्षत्रिय कहा जाता था। उनका काम युद्ध करना और लोगों की रक्षा करना था। तीसरे स्थान पर विशु या वैश्य थे। इनमें कृषक, पशुपालक और व्यापारी आते थे क्षत्रिय और वैश्य दोनों को ही यज्ञ करने का अधिकार प्राप्त था। वर्णों में अंतिम स्थान शूद्रों का था। इनका काम अन्य तीनों वर्गों की सेवा करना था। इन्हें कोई अनुष्ठान करने का अधिकार नहीं था। प्रायः औरतों को भी शूद्रों के समान माना गया । महिलाओं तथा शूद्रों को वेदों के अध्ययन का अधिकार नहीं था। राज्य राजा और एक प्राचीन गणराज्य पुरोहितों के अनुसार सभी वर्गों का निर्धारण जन्म के आधार पर होता था। उदाहरण के तौर पर , ब्राह्मण माता – पिता की संतान ब्राह्मण हो होती थी ।


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Amit Sengar

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मुझे अपने आप पर गर्व है कि में एक पत्रकार हूँ। क्योंकि पत्रकार होना अपने आप में कलाकार, चिंतक, लेखक या जन-हित में काम करने वाले वकील जैसा होता है। पत्रकार कोई कारोबारी, व्यापारी या राजनेता नहीं होता है वह व्यापक जनता की भलाई के सरोकारों से संचालित होता है। वहीं हेनरी ल्यूस ने कहा है कि “मैं जर्नलिस्ट बना ताकि दुनिया के दिल के अधिक करीब रहूं।”