अब न्याय की देवी की आंखों के सामने होगा फैसला, तलवार नहीं हाथों में संविधान होगा, CJI चंद्रचूड़ की कवायद

सुप्रीम कोर्ट में जजों की लाइब्रेरी में न्याय की देवी की नई मूर्ति स्थापित की गई है। जिसकी आंखे खोली है। हाथों में तलवार भी नहीं है।

Manisha Kumari Pandey
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Statue of Lady Justice

Supreme Court Lady of Justice Statue: आँखों में पट्टी और हाथों में तलवार वाली न्याय की मूर्ति अपने कोर्ट में देखी होगी। लेकिन अब न्याय की देवी की आंखों के सामने फैसला होगा। सुप्रीम कोर्ट में स्थापित लेडी जस्टिस की मूर्ति में कई बदलाव किए हैं। उनके हाथ में तलवार नहीं बल्कि संविधान की किताब है। आँखों से पट्टी भी हट चुकी है। वहीं दूसरे हाथ में न्याय का तराजू है।

यह कवायद चीस जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की है। उनके निर्देशानुसार न्याय की देवी की प्रतिमा को अलग तरीके से बनाया गया है। जिसे सुप्रीम कोर्ट में जजों की लाइब्रेरी में स्थापित किया गया है। नई मूर्ति यह संदेश देती है कि अब भारत में “कानून अंधा नहीं है”

पुरानी और नई मूर्ति में क्या है अंतर? (CJI DY Chandrachud)

न्याय की देवी के हाथों में तलवार को सजा देने की शक्ति का प्रतीक माना जाता है। आँखों में पट्टी यह दर्शाती है कि कानून के सामने सब बराबर हैं। वहीं तराजू को दर्शाता है कि अदालत दोनों पक्षों के दलीलों, तर्कों और तथ्यों को सुनते हुए कोई निर्णय लेगा। लेकिन लेडी जस्टिस की नई मूर्ति की आँखें खुली हैं, जो दर्शाती है कि कानून अंधा नहीं होता है बल्कि सबको बराबर देखता है। उनके हाथों में संविधान का किताब यह दर्शाता है कि देसग में संविधान के हिसाब से न्याय होना चाहिए।

Statue of Lady Justice

क्या है लेडी जस्टिस की मूर्ति का इतिहास? (Lady of Justice Statue History)

अदालतों में जो मूर्ति आप देखते हैं वह यूनान की देवी है। जिनका नाम “जस्टिया” है। 17वीं शताब्दी में एक अंग्रेज न्यायालय अफसर द्वारा पहली बार इस मूर्ति को भारत लाया गया था। 18वीं शताब्दी में इस प्रतिमा का इस्तेमाल सार्वजनिक रूप से होने लगा। भारत में आजादी के बाद इसे न्याय के प्रतीक के रूप में अपनाया गया। सुप्रीम कोर्ट समेत सभी अदालतों में इसे स्थापित किया गया। अब भारत में अंग्रेजी परंपरा को पीछे छोड़ते हुए नए बदलाव करना चाहता है। न्याय की देवी की नई मूर्ति भी ऐसी ही एक पहल है।

 


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