कोलकाता, डेस्क रिपोर्ट। देश की सुप्रतिष्ठित नाट्य निर्देशक, अभिनेत्री एवं सामाजिक कार्यकर्ता उषा गांगुली की स्मृति में साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था नीलांबर ने 28 अगस्त को ‘प्रथम उषा गांगुली स्मृति व्याख्यानमाला’ का आयोजन किया गया। रवींद्र सदन परिसर के नंदन-3 सभागार में आयोजित इस समारोह में साहित्य, कला और संस्कृति के ख्यात आलोचक ज्योतिष जोशी ने ‘भारतीय नाट्य परंपरा और आधुनिक रंगमंच’ विषय पर व्याख्यान दिया।
समारोह की शुरुआत संस्था के अध्यक्ष यतीश कुमार के स्वागत वक्तव्य के साथ हुई। आयोजन की रूपरेखा और नीलांबर के साथ उषा गांगुली की स्मृतियों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि उषा गांगुली के जाने से बांग्ला और हिंदी रंगमंच के मध्य मज़बूती से टिका हुआ एक पुल ढह गया। निश्चय ही उषा जी का महाप्रयाण एक संघर्षशील, जुझारू, नवोन्मेषी और सतत सक्रिय भारतीय कलाकार का बिछोह है। उनके द्वारा निर्देशित और लिखित नाटकों के जरिए हम स्त्री की सुनी-अनसुनी आवाज़ों से बावस्ता होते रहेंगे। इसके बाद उषा गांगुली की स्मृति में उनके साथ नीलांबर के सचिव एवं निर्देशक ऋतेश कुमार द्वारा लिए गए अंतिम साक्षात्कार पर आधारित एक वृत्तचित्र प्रदर्शित किया गया। इस वृत्तचित्र का संयोजन विशाल पांडेय, हंसराज एवं प्रिया शर्मा ने किया। वीडियो के माध्यम से रुद्रप्रताप सेनगुप्ता, ओम पारीक, अनुभा फतेहपुरिया, अरुण माहेश्वरी, महेश जायसवाल, सरला माहेश्वरी, प्रो. शंभुनाथ, अशोक सिंह, विनय शर्मा, करुणा ठाकुर, सैयद मोहम्मद इरफान, राकेश कुमार त्रिपाठी, नीता मोहेंद्रा, परवेज़ अख्तर, गिरिजा शंकर समेत उषा गांगुली से जुड़े कई रंगकर्मियों, कलाकारों व कलाप्रेमियों ने उन्हें याद किया। वृत्तचित्र प्रदर्शन के बाद उषा गांगुली स्मृति व्याख्यानमाला की पुस्तिका का भी लोकार्पण किया गया।
भारतीय नाट्य परंपरा और आधुनिक रंगमंच विषय पर अपने व्याख्यान में सुपरिचित आलोचक एवं कला मर्मज्ञ डॉ. ज्योतिष जोशी ने कहा कि हमें जनता के बीच नाटक को ले जाना होगा। उसे जनता के चित्त और संवेदना से जोड़ना होगा। सारी कलाओं को जनता को संबोधित होना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि भारतीय रंगकर्म में हिन्दी रंगमंच की स्थिति दूसरी भारतीय भाषाओं से इस स्तर पर भिन्न है कि वह अनेक राज्यों और विभिन्न रुचियों-संस्कारों में विभाजित है, पर उसमें प्रयोग और सर्जनात्मक खोज की संभावनाएँ अधिक हैं। इन्हीं संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए हिन्दी रंगकर्म जहाँ पश्चिमी रंगमंच के सृजनशील तत्वों का उपयोग कर रहा है, वहीं पारंपरिक नाट्य शैलियों का नवाचार कर उसमें भारतीय रंगदृष्टि को पाने की चेष्टा कर रहा है। इस चेष्टा में ही अनेक निर्देशकों ने उन प्रश्नों से मुठभेड़ करने की कोशिश की थी जो हिन्दी रंगकर्म के भविष्य से जुड़े हुए थे।
नीलाबंर के संरक्षक मृत्युंजय कुमार सिंह के वक्तव्य के साथ समारोह का समापन हुआ। उन्होंने कहा कि उषा गांगुली ने बांग्ला और हिंदी नाटकों के बीच सेतु बंधन का काम किया। उन्होंने बांग्ला नाटक के तौर-तरीकों का हिंदी नाटकों में भी प्रयोग किया। उन्होंने नाटक की भाषा को सिर्फ वाचिक, शारीरिक अथवा कायिक भाषा से आगे निकाल कर दैविक या इहलौकिक भाषा में परिणित कर दिया। कार्यक्रम की संचालक रंगकर्मी एवं अभिनेत्री कल्पना झा ने उषा जी के साथ अपने अनुभव एवं संस्मरण साझा करते हुए कहा कि उषा गांगुली थियेटर की दुनिया की ऐसी आवाज़ हैं जिसकी अनुगूँज हमेशा सुनाई देगी। रंगमंच के माध्यम से वे हमेशा जीवन से जुड़े मुद्दे उठाती रहीं हैं। उनका कहना था कि थियेटर इंसान को बेहतर बनाता है और थियेटर का प्रभाव दूरगामी होता है। व्याख्यानमाला का संयोजन कवि एवं संपादक राकेश श्रीमाल ने किया। तकनीकी विभाग का संयोजन ऋतेश कुमार एवं मनोज झा ने किया। कला एवं साहित्य-प्रेमियों की उपस्थिति ने समारोह को सफल बनाया।
सड़क से लेकर मंच तक पर मुखर रहीं उषा गांगुली: लगभग 5 दशकों तक रंगमंच से सक्रिय रूप से जुड़ी रहीं उषा गांगुली ने 1976 में कोलकाता में रंगकर्मी नामक नाट्य संस्था की स्थापना की। इस संस्था के बैनर तले उन्होंने अपने निर्देशन में ‘महाभोज’, ‘रुदाली’, ‘कोर्ट मार्शल’, ‘अंतर्यात्रा’, ‘सरहद पर मंटो’ एवं अन्य कई चर्चित नाटकों का देश-विदेश में मंचन किया। स्त्रियों से संबंधित विषयों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करना उनकी बड़ी खासियत थी। उन्हें केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार एवं ‘गुड़िया घर’ नामक नाटक में अभिनय के लिए पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का सम्मान दिया गया है। नीलांबर द्वारा वर्ष 2019 में नाटक के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें ‘रवि दवे स्मृति सम्मान’ दिया गया था।
आलोचना को कई स्तरों पर समृद्ध कर चुके हैं डॉ. ज्योतिष जोशी: डॉ. जोशी ने पिछले डेढ़ दशक से मौलिक साहित्य, कला और संस्कृति आलोचना के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है। साहित्य इनकी आलोचना का केंद्रीय क्षेत्र है, पर कला तथा नाटक-रंगमंच सहित संस्कृति के दूसरे क्षेत्रों में भी इन्होंने मनोयोग से काम किया है। इनकी तीस से अधिक मौलिक तथा संपादित पुस्तकें हैं जिनमें मुख्य मौलिक पुस्तकें हैं – जैनेन्द्र और नैतिकता, आलोचना की छवियाँ, उपन्यास की समकालीनता, पुरखों का पक्ष, संस्कृति विचार विमर्श और विवेचना, साहित्यिक पत्रकारिता, भारतीय कला के हस्ताक्षर, आधुनिक भारतीय कला, रूपंकर, कृति-आकृति, रंग-विमर्श, नेमिचन्द्र जैन, शमशेर का अर्थ, आलोचना का समय, समय और साहित्य तथा दृश्यांतर।
About Author
श्रुति कुशवाहा
2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।