Subhash Chandra Bose Jayanti 2023: स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले देश के गरम दल के नेता सुभाष चंद्र बोस की आज 127 वीं जयंती है। नेताजी का नाम उन स्वतंत्रता सेनानियों में शामिल है जो आज के युवाओं के लिए प्रेरणा हैं। उनका पूरा जीवन, विचार और देश के लिए किया गया कठोर त्याग युवाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है। उनके जन्मदिन को पराक्रम दिवस के रूप में आज देश भर में मनाया जाने वाला है। इस मौके पर हम नेताजी से जुड़ी कुछ खास बातों से आपने रूबरू करवाते हैं।
जन्म और शिक्षा
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म ओडिशा, बंगाल डिवीजन के कटक में जानकीनाथ बोस और प्रभावती के घर पर हुआ। उनके पिता शहर के प्रमुख वकील थे और उनकी 14 संताने थी। 6 बेटियां और 8 बेटे में सुभाष चंद्र बोस उनकी 9 वीं संतान थे। कटक के रेवेंशोव कॉलेज एंड स्कूल में नेताजी की प्रारंभिक पढ़ाई हुई। इसके बाद कोलकाता में स्थित प्रेजिडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने सिविल सर्विस की तैयारी करना शुरू किया और पिता ने उन्हें इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में भेज दिया। 1920 में वह सिविल सर्विस की परीक्षा पास कर चुके थे लेकिन देश को स्वतंत्रता दिलाने के संग्राम में हिस्सा लेने के लिए उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी। नौकरी छोड़ते ही उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का हाथ थामा क्योंकि जलियांवाला बाग हत्याकांड ने उन्हें झकझोर कर रख दिया था।
गांधीजी से अलग थे विचार
उस समय देश को आजादी दिलाने के लिए महात्मा गांधी भी काम कर रहे थे लेकिन उनकी सोच उदार व्यक्तित्व की थी। वहीं नेताजी का मानना था कि अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए सशक्त क्रांति की बहुत जरूरत है। दोनों का मकसद एक था लेकिन तरीके अलग थे। 1938 में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया जिसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया। 1939 में कांग्रेस अधिवेशन के दौरान नेताजी को गांधीजी के समर्थन से खड़े हुए पट्टाभी सीतारमैय्या से विजय प्राप्त हुई और गांधी और बोस के बीच होने वाले मतभेद बढ़ गए। यह देखकर नेताजी ने कांग्रेस का दामन छोड़ दिया।
आजाद हिंद सरकार की स्थापना
देश को आजादी दिलाने के लिए 1943 में 31 अक्टूबर के दिन नेताजी ने आजाद हिंद सरकार की स्थापना करते हुए आजाद हिंद फौज का निर्माण किया। 8 जुलाई 1944 को वह बर्मा जिसे अब म्यांमार के नाम से जाना जाता है पहुंचे और तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा का नारा दिया। इसके बाद वो लगातार अपनी फौज के साथ भारत को आजादी दिलाने में जुटे रहे। 1921 से 1941 के दौरान उन्हें कई बार जेल भी भेजा गया। नेताजी का मानना था कि बिना अहिंसा के स्वतंत्रता नहीं मिल सकती है। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ दूसरे विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने जर्मनी, जापान और सोवियत संघ जैसे देशों से सहयोग भी मांगा। उन्होंने जर्मनी से आजाद हिंद रेडियो स्टेशन शुरू किया और पूर्वी एशिया में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व करते रहे। भगवत गीता नेताजी के लिए एक प्रमुख प्रेरणा स्त्रोत थी।
नहीं सुलझ सकी मौत की गुत्थी
18 अगस्त 1945 को एक विमान दुर्घटना घटी और नेताजी अचानक ही लापता हो गए। इसके बाद तीन जांच आयोग बैठाए गए जिनमें से दो ने दावा किया कि दुर्घटना के बाद उनकी मृत्यु हो गई थी। वहीं तीसरे जांच आयोग का कहना था कि घटना के बाद नेताजी जीवित थे। यह दावा न्यायमूर्ति एनके मुखर्जी की अध्यक्षता वाली समिति ने किया था। काफी समय तक यह वाद विवाद चलता रहा लेकिन इसका कोई निष्कर्ष निकलकर सामने नहीं आया। सालों बाद साल 2016 में पीएम मोदी ने नेताजी के केस से जुड़ी सभी गोपनीय फाइलों का डिजिटल फॉर्मेट सार्वजनिक किया जो अभी भी दिल्ली के राष्ट्रीय अभिलेखागार में उपलब्ध है।