दिल्ली, डेस्क रिपोर्ट। 18 वी सदी की बात करें तो यह वह समय था जब विदेश में महिलाओं ने अपने हक के लिए लड़ना शुरू किया था। वे चाहती थी कि उन्हें भी मर्दों के समान अधिकार मिलें। पर यह इतना आसान न था। पर फिर भी कई महिलाएं ऐसी थी जिन्होंने ना हार मानी ना हीं कदम रोके। ऐसी ही एक महिला थी रोसा बोनहूर (Rosa Bonheu) जिन्हें गूगल ने आज अपना डूडल समर्पित किया है।
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1822 फ्रांस में जन्मी रोसा को शुरुआती दिनों में पढ़ाई लिखाई में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। जो सबसे बड़ी दिक्कत उन्हें होती थी वह थी अक्षरों को समझने की। इस समझ को बनाने के लिए उनकी मां अक्षरों के सामने एक जानवर का चित्र बनाकर उन्हें समझाया करती थीं। इसके बावजूद रोजा पढ़ाई में ज्यादा बेहतर नहीं कर सकी।
चित्रकारों के परिवार में पैदा होने की वजह से उन्होंने बोलने से पहले पेंसिल से स्केच करना सीख लिया था। और यहीं से इस महान चित्रकार की कहानी की शुरुआत हुई। जब रोसा के पिता ने उन्हें पढ़ाई में दिक्कतों का सामना करते हुए देखा तब उन्होंने निर्णय लिया कि वे उन्हें चित्रकारी सिखाएंगे। मां के द्वारा सिखाई गई जानवरों की तस्वीरों की चित्रकारी की वजह से रोज़ा को बचपन से ही जानवरों से प्यार था, और उन्होंने इसी को कैनवास पर उतारने शुरू किया।
उनकी चित्रकारी ऐसी थी कि लगता था मानो जीवित जानवर सामने खड़े हो। 1849 में उनके द्वारा बनाई गई ‘प्लोइंग इन द नेवरनाइस (Ploughing in the Nivernais)’ और ‘द हॉर्स फेयर (The Horse Fair)’ आज ही पेरिस की आर्ट गैलरी में देखने के लिए लगे हुए हैं। उनकी इस कलाकारी के लिए उन्हें रानी यूजीन (Empress Eugeine) द्वारा ‘ग्रांड क्रॉस ऑफ द लीजन ऑफ ऑनर का अवार्ड (Grand cross of the legion of Honor)’ से सम्मानित किया गया जो कि पहली बार किसी महिला कलाकार को दिया गया था।
उनके द्वारा बनाए गए जीवित चित्र और कला के क्षेत्र में उनके द्वारा दिया गए योगदान ने न जाने कितनी ही महिला कलाकारों को प्रेरित किया और आज भी कर रही हैं। 77 साल की उम्र में सन 1899 में इस महान कलाकार ने दुनिया को अलविदा कहा। गूगल ने आज यह डूडल इन्हें समर्पित कर इनके 200 वें जन्मदिन पर श्रद्धांजलि अर्पित की है।
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Gaurav Sharma
पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।
इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।