भारत के महान संतों में से एक संत रविदास ने अपने वचनों और दोहों से भक्ति की एक अलग छाप छोड़ी। संत रविदास के वचनों और दोहों को आज भी पूरी दुनिया याद करती है। हर वर्ष माघ पूर्णिमा को हिंदू पंचांग के अनुसार संत रविदास जयंती मनाई जाती है। बता दें कि संत रविदास को “संत शिरोमणि” की उपाधि भी दी गई थी।
संत रविदास द्वारा “रविदास पंथ” की स्थापना भी की गई थी। पूरी दुनिया में संत रविदास के दोहों और वचनों को आदरपूर्वक याद किया जाता है। वे भक्ति आंदोलन के प्रसिद्ध संत थे और उनके दोहों व गीतों ने लोगों पर गहरा प्रभाव डाला।
कब हुआ था संत रविदास का जन्म?
इतिहासकारों के अनुसार, संत रविदास का जन्म 1377 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के किसी गांव में हुआ था। हालांकि, कुछ विद्वानों के अनुसार उनका जन्म वर्ष 1377 नहीं बल्कि 1399 था। संत रविदास को रोहिदास और रैदास के नाम से भी पहचाना जाता है। उनके सम्मान में हर वर्ष रविदास जयंती का पर्व मनाया जाता है। उन्होंने समाज सुधार के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया, शिक्षा के क्षेत्र में अपना योगदान दिया और सामाजिक समानता के लिए आवाज उठाई।
कैसे संत बने संत शिरोमणि रविदास?
संत शिरोमणि रविदास संत कैसे बने, इस पर कई कथाएं प्रचलित हैं। इतिहासकारों के अनुसार, एक बार जब संत रविदास को उनके पिता ने घर से निकाल दिया, तो वे एक कुटिया बनाकर रहने लगे और साधु-संतों की सेवा करने लगे। वे जूते-चप्पल बनाने का कार्य करते थे और भक्ति आंदोलन का हिस्सा बन गए। उनके उच्च विचारों से अन्य संत भी प्रभावित हुए, और धीरे-धीरे उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ती गई। इसके बाद, संत रविदास शिरोमणि के रूप में प्रसिद्ध हो गए। इस वर्ष संत गुरु रविदास की 648वीं जन्म वर्षगांठ मनाई जा रही है।