भारत में ट्रेन चलने के 56 साल बाद उसमें लगे टॉयलेट, एक भारतीय के पत्र ने ब्रिटिश सरकार को सोचने पर किया मजबूर

Indian Railways

In India, toilets installed in trains in 1909 : हम एक ऐसे समय में हैं जहां तकनीक ने हमारे जीवन को बहुत आसान बना दिया है। एक क्लिक पर सारी दुनिया हमारे सामने है। चाहे किसी को पैसे भेजने हो, शॉपिंग करनी हो या फिर ट्रेन या फ्लाइट का टिकट बुक करवाना हो। हर काम स्मार्टफोन और इंटरनेट के जरिए हो जाता है। लेकिन अगर हम पीछ मुड़कर देखें तो इसके पीछे एक लंबी यात्रा नजर आती है।

ट्रेन में शौचालय बनने की कहानी

यात्रा की बात करते हैं..आज हम अपनी सुविधानुसार ट्रेन या हवाई यात्रा चुन सकते हैं। मन हुआ तो अपनी गाड़ी उठाकर रोड ट्रिप पर निकल जाएं। लेकिन कुछ दशक पीछे जाएं तो ये सब इतना आसान नहीं था। आज हम बात करेंगे रेल की। जैसा की हम सब जानते हैं, भारत में पहली रेल या ट्रेन 1853 में चली थी। लेकिन क्या आपको ये पता है कि उस समय ट्रेनों में शौचालय नहीं होते थे। करीब 56 साल तक ट्रेन बिना टॉयलेट के ही दौड़ती रही। लेकिन फिर 1909 में कुछ ऐसा हुआ, जिससे भारतीय रेल में टॉयलेट लगाए गए।

1909 से की तस्वीर अलग थी। उस समय अगर किसी रेलयात्री को शौचालय जाना होता तो उसे इंतजार करना पड़ता था। ट्रेन के स्टेशन पर रुकने के बाद या तो वो प्लेटफॉर्म पर बने टॉयलेट में जाता या फिर जंगलों में फारिग होता। और इस दौरान ट्रेन छूट जाने का खतरा भी बराबर बना रहता। कई बार तो यात्रियों को भागकर अपनी ट्रेन पकड़नी पड़ी। फिर 114 साल पहले कुछ ऐसा हुआ जिसने ये तस्वीर बदल दी। दरअसल इसका श्रेय एक हिंदुस्तानी को जाता है।

हिंदुस्तानी शख्स के पत्र ने बदली तस्वीर

ओखिल चंद्र सेन नाम के व्यक्ति 1909 में ट्रेन का सफर कर रहे थे। इस बीच उनका पेट गड़बड़ हुआ और उन्हें शौच के लिए नीचे उतरना पड़ा। मगर इस दौरान उनके साथ जो वाकया हुआ, उसे उन्होने पत्र में लिखकर ब्रिटिश सरकार को भेजा। इस पत्र में उन्होने लिखा कि वो पैसेंजर ट्रेन से अहमदपुर आए लेकिन उस समय उनके पेट में खराबी हुई। इसके बाद वो टॉयलेट करने बैठे लेकिन इसी दौरान गार्ड ने सीटी बजा दी। किसी तरह वो एक हाथ में लोटा और एक हाथ से धोती संभाले भागे लेकिन उनकी ट्रेन छूट गई। इस दौरान उनकी धोती भी खुल गई और वहां मौजूद सभी लोगों ने उनकी ये खराब हालत देख ली और उन्हें शर्मिंदा होना पड़ा। ट्रेन के गार्ड की इस हरकत की शिकायत उन्‍होंने लेटर लिखकर रेलवे  कार्यालय से की और गार्ड पर जुर्माना लगाने की मांग भी की।

आज भी सुरक्षित रखा है पत्र

माना जाता है कि ये पत्र मिलने के बाद ही रेलवे अधिकारियों ने ट्रेन में शौचालय बनाने का सोचा और इस दिशा में कदम उठाए। इस तरह ओखिल चंद्र सेन का भारतीय रेलों में टॉयलेट की सुविधा शुरू करवाने में बहुत बड़ा योगदान है। इसके बाद 1909 में रेलों में शौचालय बनाए गए और आम लोगों को ये सुविधा मिल सकी। टॉयलेट लगवाने के लिए लिखा गया यह सिफारिशी पत्र आज भी रेल संग्रहालय में रखा गया है। हालांकि भारत में लोको पायलटों को रेल इंजन में इस सुविधा को पाने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा। 2016 में जाकर उनकी प्रतीक्षा खत्म हुई और इंजन में टॉयलेट लगवाए गए। आज हम बुलेट ट्रेन के जमाने में जी रहे हैं, ऐसे में हमें ये पता होना जरुरी है कि इस दिन के पीछे कितने लोगों ने कितने कष्ट सहे हैं और इसके लिए काम किया है। बात सिर्फ ट्रेन में टॉयलेट की नहीं, हर क्षेत्र में हुए विकास के पीछे एक लंबी गाथा है और इसे जानना बेहद रोचक होता है।

भारत में ट्रेन चलने के 56 साल बाद उसमें लगे टॉयलेट, एक भारतीय के पत्र ने ब्रिटिश सरकार को सोचने पर किया मजबूर

 

 


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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