Bhog Niyam: भगवान को भोग चढ़ाने के बाद कितनी देर रखना है सही? जानें नियम

Bhog Niyam: सनातन धर्म में भगवान को भोग चढ़ाना एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। भोग, जिसे प्रसाद भी कहा जाता है, भक्तों द्वारा भगवान को अर्पित किया गया पवित्र भोजन है। भोग चढ़ाने के बाद, यह महत्वपूर्ण है कि कुछ नियमों का पालन किया जाए ताकि भगवान का सम्मान बना रहे और भक्तों को अधिकतम लाभ प्राप्त हो।

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Bhog Niyam: सनातन धर्म में, भगवान को भोग अर्पित करना एक अत्यंत महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। यह भक्ति और समर्पण का प्रतीक है, जो देवी-देवताओं को प्रसन्न करता है और मनोकामनाएं पूर्ण करता है। घर या मंदिर, दिन में दो बार भगवान को भोग लगाने का विधान है – प्रातःकाल में नैवेद्य और सायंकाल में अर्घ्य। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भोग लगाने के कुछ निश्चित नियम हैं जिनका पालन करना आवश्यक है? जानकारी के अभाव में, कुछ लोग भगवान को भोग लगाने के बाद प्रसाद को वहीं छोड़ देते हैं, जो शास्त्रों में गलत माना जाता है। आइए, आज हम भोग और प्रसाद से जुड़े इन दिव्य नियमों को समझते हैं, जो भक्ति और विज्ञान का संगम दर्शाते हैं।

क्यों महत्वपूर्ण है भोग का समय

शास्त्रों के अनुसार, भोजन एक निश्चित समय के लिए अपनी पवित्रता और ताजगी बनाए रखता है। भगवान को भोग लगाने के बाद उसे मंदिर या पूजा स्थल पर अधिक समय तक न रखने का विशेष ध्यान रखना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि भोग को लंबे समय तक रखने से इसका आध्यात्मिक महत्व समाप्त हो जाता है और इसे अशुभ माना जाता है। भोग को ज्यादा देर तक रखने से उसमें निहित पवित्रता और सकारात्मक ऊर्जा कम हो जाती है। ऐसा माना जाता है कि भोग को ज्यादा देर तक रखने से उसमें नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश हो जाता है। ‘विश्वक्सेन’, ‘चंदेश्वर’, ‘चंडान्शू’ और ‘चाँडाली’ नामक राक्षसी शक्तियां भोग में प्रवेश कर सकती हैं, जिसके फलस्वरूप पूजा का लाभ कम हो जाता है। नकारात्मक ऊर्जा से युक्त भोग का सेवन करने से भक्तों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

किन बर्तनों में लगाना चाहिए भोग

1. धातु के बर्तन: सोना, चांदी, पीतल और तांबा, इन धातुओं को शुद्ध और पवित्र माना जाता है। इनमें भोजन पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करके बैक्टीरिया को नष्ट करने में मदद करता है, जिससे भोजन ताजा और स्वस्थ रहता है। तांबे में रोगाणुनाशक गुण होते हैं, जो भोजन को संक्रमण से बचाते हैं। चांदी में शीतलन प्रभाव होता है, जो भोजन को ठंडा रखने में मदद करता है।

2. मिट्टी के बर्तन: मिट्टी, प्राकृतिक और पर्यावरण के अनुकूल, मिट्टी के बर्तनों में भोजन पकाने से उसमें मौजूद पोषक तत्वों का संरक्षण होता है। मिट्टी को धरती का तत्व माना जाता है, जो भोजन को पवित्रता और शुद्धता प्रदान करता है।

3. लकड़ी के बर्तन: लकड़ी के बर्तन प्राकृतिक और स्वस्थ होते हैं। इनमें भोजन पकाने से उसमें लकड़ी की सुगंध आती है, जो भोजन को स्वादिष्ट बनाती है। लकड़ी के बर्तन पर्यावरण के अनुकूल होते हैं और इन्हें आसानी से पुन: उपयोग किया जा सकता है।

(Disclaimer- यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं के आधार पर बताई गई है। MP Breaking News इसकी पुष्टि नहीं करता।)


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भावना चौबे

भावना चौबे

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