Gita Updesh : श्रीमद्भगवद्गीता धर्म, दर्शन और योग के महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के समय उपदेश दिया था। उन्होंने अर्जुन को उसके कर्तव्य का पालन करने के लिए प्रेरित किया। साथ ही धर्म और योग के रास्ते पर मार्गदर्शन किया। दरअसल, युद्ध के समय अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से अपने नैतिक संदेहों को व्यक्त किया और युद्ध करने की इच्छा छोड़ने का विचार किया। उस समय माधव ने अर्जुन को युद्ध के लिए तत्परता से प्रेरित किया और विश्व रुप से रूबरू करवाया। बता दें कि गीता में जीवन के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया गया है। इसमें कर्तव्य, धर्म, भक्ति और ज्ञान शामिल है। दरअसल, महाभारत में दो परिवार पांडवों और कौरवों के बीच धर्म और न्याय के लिए युद्ध किया गया था जोकि एक प्रकार से राजनीतिक संघर्ष था। जिसका मुख्य कारण धृतराष्ट्र के पुत्र दुर्योधन की अभिमानी और निर्दयी स्वभाव को माना गया है। इसमें कुल 18 अध्याय और लगभग 700 श्लोक हैं, जो संस्कृत भाषा में लिखा गया था। हालांकि, अब बहुत सी भाषाओं में इसका अनुवाद किया जा चुका है। तो चलिए आज के आर्टिकल में हम आपको व्यक्तिगत विकास के उन 4 स्तंभों के बारे में बताएंगे, जिससे राहें आसान हो जाती है। आइए जानते हैं विस्तार से यहां…
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व्यक्तिगत विकास के 4 स्तंभ
गीता उपदेश के दौरान भगवान श्री कृष्ण ने बताया कि व्यक्तिगत विश्वास के लिए इंसान के अंदर आत्मा जागरूकता होनी चाहिए। इससे वह हमेशा खुद का विकास करता है। ऐसे में अगर आपको सफलता चाहिए, तो सीखने की चाहत अवश्य रखनी चाहिए। यह जीवन में हमेशा आपको आगे बढ़ाने का काम करता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने व्यक्तिगत विश्वास के महत्व को उजागर किया है उनके अनुसार हमें स्वयं का विकास करना चाहिए, जिससे हमें सफलता मिल सके। हमें हमेशा सीखने के लिए तत्पर और अनुसंधानशील रहना चाहिए। बता दें कि आत्मा की जागरूकता खुद को जानने की क्षमता प्रदान करती है, जो असीमित पोटेंशियल को समझने में मदद करती है।
गीता उपदेश के दौरान भगवान श्री कृष्ण ने बताया कि जिस व्यक्ति को व्यक्तिगत विकास चाहिए। उन्हें जीवन में लचीलापन लाना पड़ता है। लचीलापन के माध्यम से व्यक्ति के समझने की क्षमता, समर्थन और समर्पण बढ़ता है। बता दें कि जीवन में लचीलापन लाने के लिए हमें सीखने की अभिलाषा और समझने की क्षमता होनी चाहिए। इसलिए समस्याओं को समझने के लिए खुले मन से सुनना चाहिए और नई सोच को स्वागत करना चाहिए। इससे इंसान सफलता की सीढ़िया पर तेजी से आगे बढ़ता है।
किसी भी इंसान को व्यक्तिगत विकास के लिए अपने स्वभाव में सरलता, मीठापन और सहानुभूति रखनी चाहिए। यह इंसान के आदर्श होने की पहचान होती है, जो व्यक्ति स्वभाव से अच्छा होता है। उसका व्यक्तित्व भी लोगों द्वारा पहचाना जाता है और उसे समाज में मान-प्रतिष्ठा मिलती है। इन गुणों का अभ्यास करने से व्यक्ति अपने स्वयं के और अन्यों के विकास में सहायक होता है, जो उसके लिए न केवल व्यक्तिगत सफलता लाता है, बल्कि समाज के भलाई के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान होता है।
खुद को बेहतर से बेहतरीन बनाने के लिए निरंतर सीखते रहना जरूरी है। गीता उपदेश के दौरान भगवान श्री कृष्ण ने बताया है कि जो अपने जीवन में कभी भी पूर्ण विराम नहीं देते, वह सर्वोत्तम इंसान बनकर उभरते हैं। क्योंकि उनके अंदर हमेशा सीखने की कला रहती है, जो उन्हें एक अच्छा व्यक्ति बनाता है। व्यक्तिगत विकास और समृद्धि के लिए सीखना और प्रगति करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके लिए हमें निरंतर आत्म-समीक्षा करते रहना चाहिए, अपनी गलतियों से सीखना चाहिए और नई जानकारी का अध्ययन करना चाहिए। यह हमें एक अधिक प्रासंगिक, समर्थ और सफल व्यक्ति बनाता है।
(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।)
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