होली का त्योहार दो दिन का होता है, पहले ही दिन होलिका दहन होता है, दूसरे दिन रंग-बिरंगे रंगों से होली खेली जाती है। देश भर में होली के त्योहार को लेकर अलग ही उत्साह और उल्लास नज़र आता है। ना सिर्फ़ बच्चे बल्कि बड़े-बुजुर्ग भी इस त्योहार को लेकर बहुत ही उत्साहित रहते हैं।
इस दिन को लेकर ऐसा कहा जाता है कि प्रह्लाद की बुआ होलिका ने जब प्रह्लाद को अग्नि में जलाने की कोशिश की तो वह ख़ुद ही जलकर राख हो गईं। तब से ही होली के त्योहार के एक दिन पहले फाल्गुन महीने की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन किया जाता है। इस त्योहार को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।

इन जगहों पर नहीं होता होलिका दहन (Holika Dahan 2025)
देश भर में होली का त्योहार और होली के एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में कुछ शहर या राज्य ऐसे भी हैं जहाँ पर होलिका दहन नहीं किया जाता है। जी हाँ, यहाँ के स्थानीय लोगों की अपनी अलग परंपराएं है, चलिए जानते हैं कि कहाँ कहाँ पर होलिका दहन नहीं किया जाता है।
मध्य प्रदेश का सागर जिला
मध्य प्रदेश के सागर ज़िले में स्थित हथखोह गाँव एक ऐसी रहस्यमय परंपरा का केंद्र है, जो होलिका दहन के प्रचलित रीति-रिवाज़ों से पूरी तरह अलग है। इस गाँव में पिछले 400 वर्षों से होलिका दहन नहीं किया जाता। इसके पीछे गाँव वालों की अटूट आस्था और एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। गाँव के निवासी बताते हैं, कि गाँव के घने जंगल में झारखंडन माता का एक प्राचीन मंदिर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि जब इस गाँव में होलिका दहन करने की कोशिश की गई थी तब गाँव में भीषण आग लग गई थी, आस-पास के क्षेत्रों को भी अपनी चपेट में ले लिया था। डर के मारे लोगों ने मंदिर की शरण ली और माता से क्षमा माँगी, कि वे अब कभी भी गाँव में होलिका दहन नहीं करेंगे।
उत्तर प्रदेश का सहारनपुर जिला
जहाँ देश भर में होली के एक दिन पहले होलिका दहन की परंपरा निभाई जाती है वहीं उत्तर प्रदेश के सहारनपुर ज़िले का बारसी गाँव ऐसा है, जहाँ पर होलिका दहन नहीं किया जाता है। कहा जाता है कि महाभारत काल से जुड़े एक प्राचीन शिव मंदिर के कारण सैकड़ों वर्षों से होलिका दहन नहीं किया जाता है। लोगों का मानना है कि होलिका दहन करने से भगवान शिव के चरण जल जाएंगे। गाँव की महिलाएँ पास वाले गाँव टिकरोल में जाकर होलिका दहन करती है।
छत्तीसगढ़ का दुर्ग जिला
छत्तीसगढ़ के दुर्ग ज़िले का गोंडपेंड्री गाँव एक ऐसा स्थान है जहाँ सदियों से होलिका दहन नहीं किया जाता है। इस परंपरा को न करने के पीछे एक डरावना कारण है, गाँव के लोग बताते हैं कि कई साल पहले होलिका दहन के दिन गाँव में एक युवक को ज़िंदा जलाने की कोशिश की गई थी। इस घटना ने पूरे गाँव में डर का माहौल पैदा कर दिया था। तब से ही गाँव के लोगों ने भी इस बात का निर्णय लिया कि कभी भी इस गाँव में होलिका दहन नहीं किया जाएगा।
राजस्थान का भीलवाड़ा जिला
राजस्थान के भीलवाड़ा ज़िले में स्थित हिरणी गाँव में पिछले 70 साल से होलिका दहन नहीं किया जा रहा है। बताया जाता है कि 70 साल पहले जब होलिका दहन किया गया था तब अचानक आग लग गई थी। इस आग ने न सिर्फ़ घरों को नुक़सान पहुंचाया बल्कि गाँव की कई परिवारों को भी उजाड़ दिया। तब से यह निर्णय लिया गया है कि इस गाँव में आज के बाद होलिका दहन नहीं किया जाएगा, और आज तक सभी लोग इस परंपरा का पालन करते हैं। इस गाँव के लोग होली बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं लेकिन होलिका दहन के स्थान पर यहाँ चाँदी की होली मनाने की अनूठी परंपरा विकसित हुई है।