Mangalsutra importance: क्या आप जानते हैं कि भारत में हिंदू धर्म में शादी के बाद महिलाओं को मंगलसूत्र पहनने का क्या कारण है? इस रिवाज़ की शुरुआत कब हुई थी और यह आज किन-किन देशों में प्रचलित है? अगर आप भी इस बात से अनजान हैं तो इस खबर में हम आपको इस सवाल का उत्तर बताने वाले हैं। दरअसल हिंदू धर्म में मंगलसूत्र का बहुत बड़ा महत्त्व हैं। शादी के बाद इसे पहनना महिलाओं के लिए इसे अनिवार्य माना जाता हैं।
जानिए इसकी शुरुआत के बारे में:
दरअसल शादी के बाद महिलाओं के गले में मंगलसूत्र पहने का प्रथम स्त्रोत दक्षिण भारत माना जाता है। जानकारी के अनुसार इस प्रथा की शुरुआत छठी शताब्दी में हुई थी, जिसका इतिहास गुरु शंकराचार्य की किताब ‘सौंदर्य लहरी’ में भी मिलता है। हिंदू संस्कृति में मंगलसूत्र को पति पत्नी का रक्षा कवच माना गया है। इस प्रथा के प्रमुख रूप में तमिलनाडु में इसे ‘थाली’ या ‘थिरू मंगलयम’ कहा जाता है, जबकि उत्तर भारत में इसे ‘मंगलसूत्र’ ही कहा जाता है।
क्या होता हैं मंगलसूत्र का अर्थ?
आपको बता दें कि मंगलसूत्र का अर्थ है ‘पवित्र हार’ जो कि दो शब्दों के अनुसार, ‘मंगल’ और ‘सूत्र’, का मेल है। ‘मंगल’ शब्द का अर्थ होता है पवित्र और ‘सूत्र’ का मतलब होता है हार या गहना। हिंदू धर्म में मंगलसूत्र को वैवाहिक जीवन का एक महत्वपूर्ण प्रतीक माना जाता है। यहां तक कि अलग-अलग क्षेत्रों में इसकी रूपरेखा भी विभिन्न होती है, जैसे कुछ स्थानों पर मंगलसूत्र में सोने, सफेद, या लाल मोतियों का उपयोग किया जाता है। यह प्रथा भारत, नेपाल, बांग्लादेश, और पाकिस्तान के हिंदू समुदाय के साथ-साथ सीरियाई ईसाई समुदाय में भी पाई जाती है।
आखिर क्या है मंगलसूत्र की मान्यताएं?
दरअसल मंगलसूत्र के बारे में अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न मान्यताएं मिलती हैं। जानकारी के मुताबिक इसे काले मोती के को लेकर माना जाता है कि यह भगवान शिव का प्रतीक है और सोने का संबंध माता पार्वती से माना जाता है। इसके साथ ही यह भी मान्यता मिलती है कि मंगलसूत्र में 9 मनके होते हैं, जो मां दुर्गा के नौ स्वरूपों को दर्शाते हैं और इन्हें पृथ्वी, जल, वायु, और अग्नि के प्रतीक के रूप में भी जाना जाता है। यह महिलाओं के 16 श्रृंगार में से एक है।