क्या है नवरात्रि का गरबा-डांडिया कनेक्शन, जानिए इस पर्व में पारंपरिक नृत्य का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

माता की आराधना पर्व के दौरान देशभर में गरबा और डांडिया नृत्य किया जाता है। गरबा, माँ दुर्गा की आराधना और नारी शक्ति का प्रतीक है, जहां गोल घेरों में दीपक के साथ नृत्य किया जाता है। डांडिया देवी दुर्गा और महिषासुर के युद्ध का प्रतीकात्मक रूप है, जिसमें लकड़ी की छड़ियों से युद्ध का प्रतीक नृत्य होता है। ये नृत्य समाज में सामूहिकता, आनंद और देवी के प्रति समर्पण की भावना को प्रकट करते हैं।

Garba

Navratri connection with Garba and Dandiya : आज नवरात्रि का पांचवां दिन है और श्रद्धालु देवी स्कंदमाता की पूजा कर रहे हैं। नवरात्रि हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है जिसमें देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है- चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि। शारदीय नवरात्रि अधिक प्रसिद्ध है और इसे विशेष रूप से पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। नवरात्रि का मुख्य उद्देश्य शक्ति की देवी दुर्गा की पूजा करना और जीवन में बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देना है।

नवरात्रि के उत्सव में गरबा और डांडिया दो महत्वपूर्ण नृत्य-परंपराएं हैं, जिनका न केवल सांस्कृतिक महत्व है, बल्कि धार्मिक पहलू भी है। पर्व के दौरान गरबा और डांडिया पारंपरिक नृत्य किया जा है। ये विशेषकर गुजरात और महाराष्ट्र में खेला जाता था लेकिन अब देशभर में इसका आयोजन होता है। इन नृत्यों का नवरात्रि से गहरा सांस्कृतिक और धार्मिक संबंध है, जो उत्सव की खुशी और सामुदायिक भावना को भी प्रकट करता है।

नवरात्रि का महत्व और गरबाडांडिया की परंपरा

नवरात्रि देवी दुर्गा की पूजा का पर्व है जो शक्ति, साहस और ज्ञान की प्रतीक मानी जाती हैं। हर दिन देवी के एक रूप की पूजा की जाती है और यह पर्व व्यक्ति को आत्मशुद्धि और आंतरिक शक्ति के लिए प्रेरित करता है। नवरात्रि का त्योहार बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। देवी दुर्गा का महिषासुर पर विजय प्राप्त करना, राक्षसों और नकारात्मक शक्तियों के नाश का प्रतीक है। यह त्योहार हमें सिखाता है कि चाहे कितनी भी कठिनाइयां क्यों न हों, अंत में सत्य और धर्म की जीत होती है। इसे आत्मशुद्धि, ध्यान और तपस्या का समय माना जाता है। लोग उपवास रखते हैं, ध्यान करते हैं और दुर्गा सप्तशती जैसे धार्मिक ग्रंथों का पाठ करते हैं। इस दौरान लोग अपनी आंतरिक ऊर्जा को संतुलित करने और अपने मन को शांत करने का प्रयास करते हैं।

गरबा नृत्य 

नवरात्रि के दौरान गरबा और डांडिया खेलने का धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व गहरा है। यह देवी दुर्गा की आराधना, बुराई पर अच्छाई की जीत और नारी शक्ति का सम्मान करने के साथ-साथ एकता, सामुदायिक जुड़ाव और आनंद का प्रतीक है। बात करें गरबा की तो ये शब्द संस्कृत शब्द “गर्भ” से लिया गया है, जिसका अर्थ है गर्भ या जीवन अथवी अंदर का दीपक। गरबा का संबंध माँ दुर्गा की पूजा और नारी शक्ति के सम्मान से है। इस नृत्य में महिलाएं मिट्टी के दीपक, जिसे “गरबी” कहा जाता है, को केंद्र में रखकर घेरे में नाचती हैं। यह दीपक जीवन का प्रतीक है और माँ दुर्गा के प्रति समर्पण का भाव दिखाता है।

गरबा के दौरान नृत्य करते हुए महिलाएं, जो गोल घेरे में नाचती हैं, जीवन के चक्र का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो जन्म और मृत्यु के चक्र के साथ जुड़ा हुआ है। गरबा नृत्य आमतौर पर माँ दुर्गा की आराधना के रूप में किया जाता है जो शक्ति, सौंदर्य और जीवनदायिनी ऊर्जा का प्रतीक मानी जाती हैं। इस नृत्य के माध्यम से श्रद्धालु देवी से जीवन में खुशहाली और ऊर्जा का आह्वान करते हैं।

डांडिया नृत्य 

डांडिया नृत्य का संबंध भगवान कृष्ण और रासलीला से है। डांडिया, जिसे “तलवार नृत्य” भी कहा जाता है, प्रतीकात्मक रूप से देवी दुर्गा और महिषासुर के बीच हुए युद्ध को दर्शाता है। डांडिया में लकड़ी की छड़ियों (डांडिया) का उपयोग होता है, जो तलवारों का प्रतीक हैं। यह नृत्य देवी दुर्गा की शक्ति और असुरों के विनाश का प्रतीक है। जब नृत्य करने वाले लोग डांडिया खेलते हैं, तो वह उस संघर्ष और विजय का प्रतीकात्मक नृत्य करते हैं जो बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाता है।

गरबा-डांडिया का धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व

गरबा और डांडिया नवरात्रि के धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव का एक अभिन्न हिस्सा हैं। यह नृत्य न केवल देवी दुर्गा की पूजा का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक जुड़ाव और सामुदायिक एकता को भी प्रकट करता है। यह त्योहार पुरुषों और महिलाओं को एकसाथ लाता है और पूरे समाज में खुशियों और उल्लास का माहौल पैदा करता है। इन नृत्य में पुरुष और महिलाएं दोनों भाग लेते हैं, जिससे समाज में एकता और सामूहिकता की भावना को बल मिलता है। यह नृत्य समुदाय में सद्भाव और सौहार्द्र को बढ़ावा देता है।

इसके अलावा, इन नृत्यों में पारंपरिक वेशभूषा और संगीत का भी खास स्थान होता है। महिलाएं रंग-बिरंगी घाघरा-चोली पहनकर नृत्य करती हैं, जबकि पुरुष पारंपरिक कच्छी पोशाक में होते हैं। डांडिया और गरबा के समय परंपरागत गीत और ढोल के साथ आधुनिक संगीत का भी इस्तेमाल होता है, जो नृत्य को और अधिक आकर्षक बनाता है। हालांकि समय के साथ पोशाक और अन्य कई बातों में परिवर्तन हुआ है, लेकिन आज भी ये नृत्य धार्मिक भावना के साथ सांस्कृतिक चेतना का भी प्रतीक हैं। गरबा और डांडिया सिर्फ मनोरंजन के साधन नहीं हैं, बल्कि यह भक्तों का देवी के प्रति समर्पण और आस्था प्रकट करने का माध्यम भी है।

 


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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