धूं धूं कर जला इंदौर का 20-20 रावण, इस वर्ष 21 फीट के रावण का किया गया दहन

Gaurav Sharma
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ravan effigy burnt indore

इंदौर, आकाश धोलपुरे। इंदौर में पारंपरिक त्योहारो को लेकर लोगो मे जमकर उत्साह रहता है लेकिन इस वर्ष ये उत्साह कोरोना संकट की वजह से थोड़ा फीका नजर आ रहा है। बावजूद इसके इंदौर में आज लोगो मे दशहरा पर्व को लेकर लोगों में उत्साह दिखा लोग बकायदा मास्क पहनकर दशकों पुरानी परंपरा को जीवंत रखने के लिए एकत्रित हुए।

इंदौर के दशहरा मैदान पर, जहाँ हर वर्ष लाखो लोगो की भीड़ अन्नपूर्णा मंदिर से लेकर महू नाके तक लगती थी वो भीड़ इस साल नही दिखाई दी लेकिन 7 बजने के पहले लोग अपने घरों से निकले और दशहरा महोत्सव समिति द्वारा किये जाने वाले रावण दहन आयोजन में शामिल हुए। ठीक शाम 7 बजे अहंकारी रावण का इंदौर के मुख्य आयोजन में दहन किया गया और बड़ी संख्या में लोग बुराई के प्रतीक के अंत के साक्षी बने।

बता दे कि इस वर्ष न तो पहले जैसी चमक दशहरे की थी और ना ही लोगो का हुजूम पहले जैसा था। कोरोना संकट के बीच इस वर्ष रावण के 111 फीट की बजाय 21 फीट के पुतले का दहन किया गया ताकि कम लोग रावण दहन में शामिल हो और सोशल डिस्टेंसिंग भी कायम रहे।

हालांकि एक समय लग रहा था कि छोटे रावण का पता लगने के बाद कम संख्या में लोग आएंगे लेकिन आखिर वक्त पर लोग बाहर निकले और फिर से पहले जैसी रौनक का एक पहलू दिखाई दिया। हालांकि लोगो के दिमाग मे बुराई के प्रतीक रावण की बुराई तो याद थी ही सही लेकिन लोग ये भी नही भूले थे कि कोरोना नामक एक अदृश्य बुराई उनके आस पास मौजूद है।

 

फिलहाल, इंदौर के मुख्य आयोजन में रावण का दहन ठीक 7 बजे हो गया लेकिन इस वर्ष कोविड – 19 के असर के चलते न सिर्फ रावण बौना हो गया बल्कि उसकी लंका और उसके भाई और परिवार उसके साथ नही थे। जो ये समझाने के लिए काफी है कि चीन से निकले एक वायरस ने अब बुराई की हदे भी पार कर दी है। इसलिये इस वर्ष के रावण के रण को 20-20 की संज्ञा लोगो द्वारा दी जा रही है।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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