Som Pradosh Vrat: हिंदू धर्म में हर तिथि का विशेष महत्व है। सोम प्रदोष व्रत हर माह के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन रखा जाता है। इस व्रत को लेकर ऐसी मान्यता है कि जिस भी व्यक्ति के जीवन में पितृ दोष लगता है उस व्यक्ति को जरूर यह व्रत रखना चाहिए। पितृ दोष लगने के कारण व्यक्ति को अपने जीवन में कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में अगर आपको भी ऐसा लग रहा है कि आपके जीवन में पितृ दोष लग रहा है आपको तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो वैशाख माह में आने वाले सोमवार व्रत के दिन पूजा पाठ के साथ-साथ पितृ स्तोत्र का पाठ अवश्य करें, ऐसा करने से पितृ दोष से छुटकारा मिलेगा।
सोम प्रदोष व्रत के के दिन करें ये उपाय
1. पितृ तर्पण
सोम प्रदोष व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। इसके बाद, किसी पवित्र नदी या घर पर ही बाल्टी में जल भरकर उसमें तिल, कुश, अक्षत, काले चने और जौ मिलाकर पितरों का तर्पण करें। तर्पण करते समय, मंत्रों का जाप भी करें।
2. गाय को भोजन खिलाएं
सोम प्रदोष व्रत के दिन गाय को हरा चारा, रोटी या गुड़ खिलाना बहुत ही शुभ माना जाता है। ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
3. शिव मंदिर में दर्शन करें
सोम प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव के मंदिर में जाकर दर्शन करें और उनकी पूजा करें। शिवलिंग पर जल, दूध, घी, शहद और बेलपत्र अर्पित करें। तिल का दीपक जलाएं और धूप भी लगाएं। भगवान शिव की आरती गाएं और मंत्रों का जाप करें।
4. दान करें
सोम प्रदोष व्रत के दिन दान करना बहुत ही पुण्य का काम माना जाता है। आप अपनी इच्छानुसार गरीबों, ब्राह्मणों या किसी भी जरूरतमंद व्यक्ति को दान कर सकते हैं। दान में अनाज, वस्त्र, फल, मिठाई आदि दे सकते हैं।
5. व्रत का पालन करें
सोम प्रदोष व्रत के दिन निर्जला व्रत रखना सबसे उत्तम होता है। यदि आप निर्जला व्रत नहीं रख सकते हैं तो आप फलाहार कर सकते हैं। व्रत के दौरान नमक, मसालेदार भोजन और लहसुन-प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए।
सोम प्रदोष व्रत की पूजा विधि:
प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
पूजा स्थान को साफ और सजाएं।
भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
दीप, धूप, नैवेद्य और फल अर्पित करें।
शिव चालीसा या पंचाक्षर मंत्र का जाप करें।
भगवान शिव और माता पार्वती की आरती गाएं।
व्रत कथा पढ़ें या सुनें।
दक्षिणा अर्पित करें।
आशीर्वाद प्राप्त करें।
पितृ स्तोत्र
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ।।
मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा ।
तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि ।।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा ।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् ।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि: ।।
प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च ।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि: ।।
नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।।
अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।
अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत: ।।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण: ।।
तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:।
नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज ।।
पितृ कवच
कृणुष्व पाजः प्रसितिम् न पृथ्वीम् याही राजेव अमवान् इभेन।
तृष्वीम् अनु प्रसितिम् द्रूणानो अस्ता असि विध्य रक्षसः तपिष्ठैः॥
तव भ्रमासऽ आशुया पतन्त्यनु स्पृश धृषता शोशुचानः।
तपूंष्यग्ने जुह्वा पतंगान् सन्दितो विसृज विष्व-गुल्काः॥
प्रति स्पशो विसृज तूर्णितमो भवा पायु-र्विशोऽ अस्या अदब्धः।
यो ना दूरेऽ अघशंसो योऽ अन्त्यग्ने माकिष्टे व्यथिरा दधर्षीत्॥
उदग्ने तिष्ठ प्रत्या-तनुष्व न्यमित्रान् ऽओषतात् तिग्महेते।
यो नोऽ अरातिम् समिधान चक्रे नीचा तं धक्ष्यत सं न शुष्कम्॥
ऊर्ध्वो भव प्रति विध्याधि अस्मत् आविः कृणुष्व दैव्यान्यग्ने।
अव स्थिरा तनुहि यातु-जूनाम् जामिम् अजामिम् प्रमृणीहि शत्रून्।
(Disclaimer- यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं के आधार पर बताई गई है। MP Breaking News इसकी पुष्टि नहीं करता।)