Mon, Dec 29, 2025

दशहरा और स्वाद की परंपरा, जानिए आज के दिन क्यों खाई जाती है जलेबी और पान, इस दिन बनने वाले ख़ास पकवान

Written by:Shruty Kushwaha
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दशहरे पर खाए जाने वाले भोजन और पकवान न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि ये भारतीय संस्कृति और विविधता का भी प्रतीक हैं। जलेबी और पान की परंपरा जहाँ मिठास और उल्लास का प्रतीक है, वहीं अन्य पारंपरिक व्यंजन समाज में एकता और सामूहिकता को बढ़ावा देते हैं। दशहरे पर भोज और पकवान भारतीय परिवारों को एक साथ लाते हैं और समाज में समृद्धि और सौहार्द्र का संदेश देते हैं।
दशहरा और स्वाद की परंपरा, जानिए आज के दिन क्यों खाई जाती है जलेबी और पान, इस दिन बनने वाले ख़ास पकवान

Traditional Dussehra Foods : आज देशभर में धूमधाम से दशहरा मनाया जा रहा है। हर त्योहार की अपनी विशेषताएं होती हैं और इसमें उस पर्व पर बनने वाले भोजन का भी ख़ास महत्व होता है। दशहरे पर भी देश के अलग अलग हिस्सों में पारंपरिक रूप से कुछ विशेष व्यंजन बनाए जाते हैं। इनका पौराणिक मान्यताओं, स्थानीय परंपराओं और रीति रिवाजों से सीधा संबंध होता है। दशहरे पर कई स्थानों पर जलेबी खाने की परंपरा है। इसके पीछे एक दिलचस्प मान्यता यह है कि भगवान श्रीराम को “शशकुली” नामक मिठाई अत्यंत प्रिय थी, जिसे आज हम जलेबी के नाम से जानते हैं। 

दशहरा या विजयादशमी हिन्दू कैलेंडर का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। इस पर्व के अवसर पर देश भर के विभिन्न हिस्सों में विशेष व्यंजन और पकवान तैयार किए जाते हैं। त्योहारों का संबंध भोजन और इस दिन बनने वालों पकवानों से भी होता है और ये हमारी सांस्कृतिक विविधता और पारंपरिक स्वाद को दर्शाते हैं।

दशहरे पर जलेबी खाने की परंपरा

प्राचीन ग्रंथों और लोककथाओं के अनुसार, शशकुली एक मीठा पकवान था जिसे घी में तलकर बनाया जाता था। यह मिठाई श्रीराम को विशेष रूप से पसंद थी। शशकुली का आधुनिक रूप जलेबी है, जिसका गोल आकार और मीठा स्वाद शशकुली से मिलता-जुलता है। कई धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम जब अयोध्या लौटे थे और विजय उत्सव मनाया गया था, तो इसी शशकुली का भोग लगाया गया था।

शशकुली का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व 

रामायण में भगवान श्रीराम द्वारा रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद जब अयोध्या लौटने का वर्णन किया गया है, तब उत्सव के दौरान मिठाइयाँ बांटने और विशेष पकवान बनाने का उल्लेख है। शशकुली, जो उस समय की प्रचलित मिठाई थी, को विजय के प्रतीक के रूप में भगवान राम के सम्मान में तैयार किया गया था। समय के साथ, शशकुली का रूप बदलकर जलेबी में परिवर्तित हो गया, लेकिन ये मिठास इस उत्सव का प्रतीक बनी रही।

आज के समय में दशहरे के दिन उत्तर भारत में जलेबी खाने की प्रथा इस मान्यता से जुड़ी है कि यह मिठाई भगवान राम के प्रति श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक है। विजयादशमी पर जलेबी का सेवन बुराई पर अच्छाई की जीत और जीवन में मिठास लाने का प्रतीक माना जाता है। दशहरे के दिन जलेबी खाने की परंपरा न केवल धार्मिक मान्यताओं से जुड़ी है, बल्कि समाज में इस पर्व के सांस्कृतिक उत्सव का हिस्सा बन चुकी है। रावण दहन के बाद जलेबी का सेवन करना विजय के उल्लास का प्रतीक माना जाता है। कई स्थानों पर इसे खस्ता कचौड़ी के साथ परोसा जाता है, जिससे त्योहार की मिठास और भी बढ़ जाती है।

दशहरे पर पान का सांस्कृतिक और प्रतीकात्मकता अर्थ

दशहरे के दिन कई स्थान पर पान खाने की परंपरा भी है, विशेष रूप से उत्तर भारत में। इसके पीछे की धार्मिक मान्यता है और  पान का सेवन विजय और समृद्धि का भी प्रतीक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी तो अयोध्या वापस लौटने पर उन्हें पान का सेवन कराया गया था। पान का पत्ता शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है और इसे शुभ कार्यों में शामिल करना समृद्धि और सौभाग्य की कामना का प्रतीक होता है।

दशहरे पर अन्य पारंपरिक व्यंजन

जलेबी और पान के अलावा दशहरे के अवसर पर कई अन्य पारंपरिक और स्थानीय व्यंजन भी बनाए-खाए जाते हैं जो विभिन्न क्षेत्रों की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाते हैं। यहां दिए गए व्यंजनों के अलावा भी कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं जो स्थानीय परंपराओं, उपलब्धताओं और निजी रूचि पर भी निर्भर करते हैं।

  1. पूरी सब्जी: उत्तर भारत में दशहरे के दिन पूरी और मसालेदार सब्जी का विशेष महत्व होता है। इसे एक उत्सव के भोजन के रूप में परिवार के साथ मिलकर खाया जाता है।
  2. खीर: खीर, जो दूध चावल और चीनी से बनाई जाती है, दक्षिण और उत्तर भारत में विजयादशमी के दिन बनाई जाती है। इसे त्योहार की मिठास के प्रतीक के रूप में प्रसाद के रूप में भी परोसा जाता है।
  3. घेवर: राजस्थान और उसके आसपास के क्षेत्रों में दशहरे के अवसर पर घेवर मिठाई का विशेष महत्व होता है। यह एक तली हुई मिठाई है जिसे मैदा, घी, और चीनी की चाशनी से बनाया जाता है और त्योहारों पर इसका विशेष आनंद लिया जाता है।
  4. नारियल के लड्डू: दक्षिण भारत में नारियल के लड्डू दशहरे के दिन प्रसाद के रूप में बनते हैं। इसे शुद्ध और पवित्र भोजन माना जाता है और धार्मिक अनुष्ठानों के बाद बांटा जाता है।
  5. सादा चावल और दाल: बंगाल और ओडिशा के कुछ हिस्सों में दशहरे के दिन सादा चावल और दाल खाने का रिवाज है, जिसे सादगी और आत्मसंयम का प्रतीक माना जाता है।
  6.  खिचड़ी और पायसम : दक्षिण भारत में दशहरे पर पारंपरिक व्यंजन जैसे खिचड़ी और पायसम तैयार किया जाता है। विशेषकर तमिलनाडु और कर्नाटक में विविध प्रकार की खिचड़ी बनाई जाती हैं। इसी के साथ सांभर, रसम और अन्य मसालेदार ग्रेवी भी बनाई जाती है। पायसम खीर की तरह का ही एक मीठा व्यंजन है जिसे दूध, चावल और घी से बनाया जाता है और इसे प्रसाद के रूप में भी परोसा जाता है।
  7. सब्जी और पुरणपोली : पश्चिमी राज्यों में, विशेषकर महाराष्ट्र और गुजरात में, दशहरे पर पुरणपोली और विविध प्रकार की शाकाहारी सब्जियाँ बनाई जाती हैं। पुरणपोली चने की दाल और गुड़ से भरकर तली जाती है, जो त्योहार की मिठास को बढ़ाती है। साथ ही, वड़ा पाव और मिसल पाव भी इस समय खासा लोकप्रिय होते हैं।
  8. लड्डू और कचौड़ी : उत्तर भारत में दशहरा के अवसर पर खासकर लड्डू और कचौड़ी लोकप्रिय हैं। आज के दिन श्रद्धालु विशेष मिठाइयाँ बनाते हैं। लड्डू में बेसन, घी और चीनी का उपयोग करके स्वादिष्ट मिठाइयाँ तैयार की जाती हैं, जबकि कचौड़ी मसालेदार आलू या दाल की भरावन के साथ तली जाती हैं।