Thu, Dec 25, 2025

क्यों भगवान विष्णु ने तुलसी से रचाई शादी, जानिए इसके पीछे छिपा गहरा महत्व

Written by:Bhawna Choubey
Published:
Tulsi Vivah 2024: तुलसी विवाह हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक अवसर है, जो हर साल कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और तुलसी के विवाह का आयोजन किया जाता है, जिसे एक पवित्र और अद्भुत कड़ी माना जाता है।
क्यों भगवान विष्णु ने तुलसी से रचाई शादी, जानिए इसके पीछे छिपा गहरा महत्व

Tulsi Vivah 2024: तुलसी विवाह हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व है जो विशेष रूप से देवउठनी एकादशी के दिन मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु अपने योग निद्रा से जाते हैं और उसे शुभ अवसर पर तुलसी देवी का विवाह भगवान शालिग्राम से किया जाता है। यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि इसे सुख-समृद्धि और शांति के प्रति के रूप में भी देखा जा सकता है। इस दिन लोग घरों में तुलसी के पौधों के आसपास पूजा करते हैं और उसका विवाह संपन्न कर धार्मिक अनुष्ठान करते हैं जिससे घर में सुख-शांति, समृद्धि आती है।

तुलसी विवाह एक प्रतिक्रात्मक विवाह होता है जिसमें भगवान विष्णु तुलसी देवी का विवाह संपन्न किया जाता है। तुलसी विवाह का आयोजन घर-घर में किया जाता है, जिससे घर में सुख-समृद्धि आती है। लेकिन बहुत लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि आखिर भगवान विष्णु ने माता तुलसी से विवाह क्यों किया था? इसके पीछे की क्या कहानी रही थी? आज हम आपको इस आर्टिकल के जरिए इस कहानी को विस्तार से बताएंगे तो चलिए जानते हैं।

क्यों भगवान विष्णु ने तुलसी से रचाई शादी (Tulsi Vivah 2024)

तुलसी विवाह की कथा

तुलसी विवाह की कथा एक अद्भुत धार्मिक और आध्यात्मिक अर्थ से भरी हुई है। यह कथा प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथो से वर्णित है। जिसमें तुलसी देवी और भगवान विष्णु के बीच की गहरी भक्ति और प्रेम की परंपरा को दर्शाया गया है। तुलसी देवी पहले वृंदा थी, जो एक पवित्र पतिव्रता थी। वृंदा का विवाह जालंधर नामक एक असुर से हुआ था। जालंधर भगवान शिव का महान भक्त था और वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त थी। अपनी पतिव्रता धर्म के कारण वृंदा को अपने पति की सुरक्षा का विशेष वरदान प्राप्त हुआ था।

वृंदा का श्राप

किंतु जब जालंधर ने देवताओं से युद्ध किया और देवताओं को परेशान करना शुरू किया तब भगवान विष्णु ने जालंधर को पराजित करने के लिए वृंदा के पतिव्रता धर्म को भंग करने का प्रयास किया। भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप धारण कर वृंदा की पूजा भंग कर दी, जिससे वृंदा को गहरा आघात पहुंचा। गुस्से में आकर वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दे दिया, कि वह पत्थर बन जाएंगे। भगवान विष्णु ने श्राप को स्वीकार किया और वे शालिग्राम के रूप में प्रकट हुए, जिनकी पूजा आज भी भक्तों द्वारा की जाती है।

भगवान विष्णु ने रखा विवाह का प्रस्ताव

समय के साथ भगवान विष्णु ने वृंदा की सच्ची भक्ति और उनके पतिव्रता धर्म का सम्मान करते हुए उनसे विवाह का प्रस्ताव रखा। भगवान विष्णु ने तुलसी के पौधे को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया और शालिग्राम के साथ उनका विवाह हुआ। इसी घटना के बाद से तुलसी विवाह की परंपरा शुरू हुई।

तुलसी विवाह की परंपरा

तुलसी विवाह की यह परंपरा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि यह एक प्रतीक है समर्पण भक्ति और पतिव्रता धर्म का। इस दिन शालिग्राम और तुलसी के पौधे का विवाह संपन्न किया जाता है जो सुख समृद्धि और शांति का प्रतीक माना जाता है। यह परंपरा आज भी भक्तों के घरों में निभाई जाती है जहां लोग अपने घरों में शांति और समृद्धि की कामना करते हैं।

डिस्क्लेमर – इस लेख में दी गई सूचनाएं सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। एमपी ब्रेकिंग इनकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ की सलाह लें।